श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी51. अद्वैताचार्य को श्यामसुन्दररूप के दर्शन
प्रभु ने कहा- ‘आप लोग किसी प्रकार का भी भय न करें। मालूम होता है, आचार्य को हृदय में अपने इष्टदेव के दर्शन हो गये हैं, उसी के प्रेम में ये मूर्च्छित हो गये हैं। मुझे तो ऐसा ही अनुमान होता है।’ गद्गद कण्ठ से श्रीवास पण्डित ने कहा- ‘प्रभो! अनुमान और प्रत्यक्ष दोनों ही आपके अधीन हैं। आचार्य सौभाग्यशाली हैं जो इच्छा करते ही उन्हें आपके श्यामसुन्दररूप के दर्शन हो गये। हतभाग्य तो हमीं हैं जो हमें इस प्रकार का कभी भी सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ। अस्तु, अपना-अपना भाग्य ही तो है, न हो हमें किसी और रूप का दर्शन, हमारे लिये तो यह गौररूप ही यथेष्ट है। अब ऐसा अनुग्रह कीजिये जिससे आचार्य को होश आये।’ श्रीवासजी की बात सुनकर प्रभु ने कहा- ‘आप भी कैसी बात कहते हैं, मैं उन्हें कैसे चेतन कर सकता हूँ? वे स्वयं ही चैतन्य होंगे। यह देखो, आचार्य अब कुछ-कुछ आँखें खोलने लगे हैं।’ प्रभु का इतना कहना था कि आचार्य की मूर्छा धीरे-धीरे भंग होने लगी। जब वे स्वस्थ हुए तो श्रीवास पण्डित ने पूछा- ‘आचार्य! क्या देखा? श्रीवास के पूछने पर गद्गद कण्ठ से आचार्य कहने लगे- ‘ओहो! अद्भुत रूप के दर्शन हुए। वे ही श्यामसुन्दर वनवारी, पीतपटधारी, मुरलीमनोहर मेरे सामने प्रत्यक्ष प्रकट हुए। मैंने प्रत्यक्ष देखा, स्वयं गौर ने ही ऐसा रूप धारण करके मेरे हृदय में प्रवेश किया और अपनी मन्द-मन्द मुस्कान से मुझे बेसुध-सा बना लिया। मेरा मन अपने अधीन नहीं रहा। वह उस माधुरी को पान करने में ऐसा तल्लीन हुआ कि अपने-आपको ही खो बैठा। थोड़ी ही देर के पश्चात् वह मूर्ति गौररूप धारण करके मेरे सामने आ बैठी, तभी मुझे चेत हुआ। यह कहते-कहते आचार्य प्रेम के कारण गद्गद कण्ठ से रुदन करने लगे। उनकी आँखों की कोरों में से ठंडे अश्रुओं की दो धारा-सी बह रही थी। प्रभु ने हँसते हुए कुछ बनावटी उपेक्षा के साथ कहा- ‘मालूम पड़ता है, आचार्य ने गत रात्रि में जागरण किया है। इसीलिये आँखें बन्द करते ही नींद आ गयी और उसी नींद में इन्होंने स्वप्न देखा है, उसी स्वप्न की बातें ये कह रहे हैं।’ प्रभु की ऐसी बात सुनकर आचार्य अधीर होकर प्रभु के चरणों में गिर पड़े और गद्गद कण्ठ से कहने लगे- ‘प्रभो! मेरी अब अधिक वंचना न कीजिये। अब तो आपके श्रीचरणों में विश्वास उत्पन्न हो जाय, ऐसा ही आशीर्वाद दीजिये।’ प्रभु ने वृद्ध आचार्य को उठाकर गले से लगाया और प्रेम के साथ कहने लगे- ‘आप परम भागवत हैं, आपकी निष्ठा बहुत ऊँची है, आपके निरन्तर ध्यान का ही यह प्रत्यक्ष फल है कि नेत्र बंद करते ही आपको भगवान के दर्शन होने लगे हैं चलिये, अब बहुत देर हो गयी, माता भोजन बनाकर हम लोगों की प्रतीक्षा कर रही होगी। आज हम सब साथ-ही-साथ भोजन करेंगे।’ |