श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी51. अद्वैताचार्य को श्यामसुन्दररूप के दर्शन
इस पर आचार्य कहने लगे- ‘हाँ’ ठीक तो है। श्री के बिना हरि रह ही कैसे सकते हैं?’ ‘श्री’ विष्णुप्रिया नाम रखकर नवद्वीप में अवस्थित हैं अथवा उन्होंने श्री के साथ विष्णुप्रिया अपने नाम में और जोड़ लिया है, अब वे केवल श्री न होकर ‘श्रीविष्णुप्रिया’ बन गयी हैं।’[1] बात को दूसरी ओर घटाते हुए प्रभु ने कहा- ‘श्री तो सदा से ही विष्णुप्रिया ही हैं, ‘भक्तिप्रियो माधवः’ भगवान को तो सदा से भक्ति प्यारी है। इसलिये श्री अथवा भक्ति का नाम पहले से ही विष्णुप्रिया है।’ यह सुनकर आचार्य जल्दी से प्रभु को प्रणाम करते हुए बोले- ‘तभी प्रभु ने एक विग्रह से लक्ष्मीरूप से उन्हें ग्रहण किया फिर अब श्रीविष्णुप्रिया के रूप से उनके दूसरे विग्रह को अपनी अर्धांगिनी बनाया है।’ इस प्रकार आपस में श्लेषात्मक बातें हो ही रही थीं कि प्रभु के घर से एक आदमी आया और उसने नम्रतापूर्वक प्रभु से निवेदन किया- ‘शचीमाता ने कहलाया है कि आज आचार्य घर में ही भोजन करें। कृपा करके वे हमारे आज के निमन्त्रण को अवश्य ही स्वीकार करें।’ उस आदमी की बातें सुनकर प्रभु ने उसे कुछ भी उत्तर नहीं दिया। जिज्ञासा के भाव से वे आचार्य के मुख की ओर देखने लगे। प्रभु के भाव को समझकर आचार्य कहने लगे- ‘हमारा अहोभाग्य, जो जगन्माता ने हमें भोजन के लिये निमन्त्रित किया है, इसे हम अपना सौभाग्य ही समझते हैं।’ बीच में ही बात को काटते हुए श्रीवास पण्डित बोल उठे- ‘इस सौभाग्यसुख को अकेले ही लूटोगे या दूसरों को भी साझी बनाओगे? हम तो तुम्हें अकेले कभी इस आनन्द का उपभोग न करने देंगे। यदि गौरांग हमें निमन्त्रित न भी करेंगे, तो हम शचीमाता के समीप जाकर याचना करेंगे। वे तो साक्षात अन्नपूर्णा ही ठहरीं, उनके दरबार से कोई निराश होकर थोड़े ही लौट सकता है, आचार्य महाशय! तुम्हारी अकेले ही दाल नहीं गलने की, हमें भी साथ ले चलना पड़ेगा।’ आचार्य अद्वैत और महाप्रभु वैसे तो दोनों ही सिलहट निवासी ब्राह्मण थे, किंतु दोनों का परस्पर में खान-पान एक नहीं था, इसी बात को जानने के निमित्त कुछ संकोच के साथ प्रभु ने कहा- ‘भोजन की क्या बात है, सर्वस्व आपका ही है, किंतु आचार्य को दो आदमियों के लिये भात बनाने में कष्ट होगा।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गौर की द्वितीय पत्नी का नाम श्रीविष्णुप्रिया था। उसी को लक्ष्य करके अद्वैताचार्य ने यह बात कही।