श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी5. व्यासोपदेश
किसी के जीवन का प्रभाव व्यापक होता है, उनके आचरणों के द्वारा अधिक लोगों का कल्याण होता है और किसी के जीवन का प्रभाव अल्प होता है, उनके थोड़े ही पुरुष लाभ उठा सकते हैं। इस प्रकार सब जातियों में, सब काल में किसी-न-किसी रूप में महात्मा उत्पन्न होते ही रहते हैं। बहुत-से ऐसे महापुरुष होते हैं जिनकी टक्कर का शताब्दियों तक कोई महापुरुष व्यक्तरूप से प्रकट नहीं होता है। किंतु इसका निर्णय होता है अपने-अपने भावों के अनुसार भिन्न-भिन्न रीति से। इस बात को आज तक न तो किसी ने पूर्णरूप से निर्णय किया है और न आगे भी कोई कर सकेगा कि अमुक महापुरुष किस कोटि के हैं और इनके बाद इनकी कोटिका कोई महापुरुष उत्पन्न हुआ या नहीं। इसलिये शालग्राम की बटिया के समान हमारे लिए तो तभी महात्मा पूजनीय तथा वंदनीय हैं। संसार में असंख्य सम्प्रदाय विद्यमान हैं और उन सबका सम्बन्ध किसी-न-किसी महापुरुष से हैं और उन सभी सम्प्रदायों के अनुयायी उन्हें ईश्वर या ईश्वरतुल्य मानते और कहते है। हमें उनकी मान्यता के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहना है। एक महापुरुष को ही सर्वस्व मानने वाले पुरुषों कों प्राय: देखा गया है कि वे अपने से भिन्न सम्प्रदाय वाले महापुरुषों की अपेक्षा करते हैं और बहुत-से तो निंदा भी करते हैं। हम ऐसा नहीं कह सकते। हमारे लिये तो सभी महापुरुष- जिनका वास्तव में किसी भी सम्प्रदाय से सम्बंध नहीं है, किंतु तो भी लोग उन्हें अपने सम्प्रदायका आचार्य या आदिपुरुष मानते हैं, समानरूप से पूजनीय और वंदनीय हैं। इसलिए हम अपने प्रेमी पाठकों से यही प्रार्थना करते हैं कि जिनका सम्बन्ध परमार्थ से है ऐसे सभी महात्माओं के चरित्रों का श्रद्धाके साथ श्रवण करना चाहिये। महात्माओं का चरित्र जीवन को महान बनाता है, हमें कर्तव्य और सहिष्णुता सिखाता है तथा हमें अपने असली लक्ष्य तक पहुँचाता है, इसलिये यथार्थ उन्नति का एकमात्र साधन महात्माओं के चरित्रों का श्रवण तथा सत्पुरुषों का सत्संग ही सर्वत्र बताया गया है। |