श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी5. व्यासोपदेश
महात्माओं के चरित्र- जिस प्रकार गंगा जी का प्रवाह निरन्तर बहता रहता है, उसी प्रकार इस पृथ्वी पर महापुरुषों का भी जन्म सदा होता ही रहता है। यदि ऐसा न हो तो इस पृथ्वी पर धर्म का तो फिर लेश भी न रहे। धर्म के बिना यह संसार एक क्षण भी नहीं रह सकता। धर्म के ही आधार पर यह जगत स्थित है। अब भी असंख्य सिद्ध महात्मा पहाड़ों की कन्दराओं में जनसंसदि से पृथक रहकर योगसाधन द्वारा संसार का कल्याण कर रहे हैं। अनेकों सिद्ध पुरुष भेष बदले पृथ्वी पर पर्यटन कर रहे हैं, लोग उन्हें पहचानते नहीं, किन्तु उनकी सभी चेष्टाएँ लोक-कल्याण के ही निमित्त होती हैं। वे अपने को अपनी शक्ति द्वारा प्रकट नहीं होने देते, अप्रकटरूप से लोक-कल्याण करने में ही उन्हें आनन्द आता है। किसी भाग्यवान पुरुष को ऐसे महापुरुषों का साक्षात दर्शन हो जाय, यह दूसरी बात है। नहीं तो वे छद्म-वेष में ही घूमा करते हैं। कुछ नित्यजीव या मुक्तजीव लोक-कल्याण के निमित्त भौतिक शरीर भी धारण करते हैं और लोगों को जन्म लेते तथा मरते हुए-से भी प्रतीत होते हैं। वास्तव में वे जन्म-मृत्यु से रहित होते हैं, केवल लोक-कल्याण के ही निमित्त उनका प्रादुर्भाव होता है और जब वे अपना काम कर चुकते हैं तब तिरोहित हो जाते हैं। उनके कार्य गुप्त नहीं होते। वे अधिकारियों को उपदेश करते हैं, शिक्षार्थियों को शिक्षा देते हैं और स्वयं आचरण करके लोगों में नवजीवन का संचार करते हैं, उनका जीवन अलौकिक होता है, उनके कार्य अचिन्त्य होते हैं। क्षुद्रबुद्धि के पुरुष उन्हें भी साधारण जीव समझकर उनके कार्यों की समालोचना करते हैं। इससे उनके काम में बहुत सहायता मिलती है, वे इसी बहाने लोगों के सामने आदर्श उपस्थित करते हैं कि ऐसी स्थिति में कैसा व्यवहार करना चाहिये। उनका वह व्यवहार अन्य लोगों के लिये प्रमाणीभूत बन जाता है। इस प्रकार वे संसारी लोगों की निन्दा-स्तुति के बीच में रहते हुए भी अपने जीवन को आदर्श जीवन बनाकर लोगों के उत्साह को बढ़ाते हैं, ऐसे महापुरुष सदा से उत्पन्न होते आये हैं, अब भी हैं और आगे भी होंगे। |