श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी48. स्नेहाकर्षण
व्यासदेव जी के शिष्य उस घोर जंगल में समिधा, कुश तथा फूल-फल लेने जाया करते थे, एक दिन उन्हें इस बीहड़ वन में एक व्याघ्र मिला। व्याघ्र को देखकर वे लोग डर गये और आकर भगवान व्यासदेव से कहने लगे- ‘गुरुदेव! अब हम घोर जंगल में न जाया करेंगे, आज हमें व्याघ्र मिला था, उसे देखकर हम सब-के-सब भयभीत हो गये।’ शिष्यों के मुख से ऐसी बात सुनकर भगवान व्यासदेव कुछ मुसकराये और थोड़ी देर सोचकर बोले- ‘व्याघ्र से तुम लोगों को भय ही किस बात का है? हम तुम्हें एक ऐसा मन्त्र बना देंगे कि उसके प्रभाव से कोई भी हिंसक जन्तु तुम्हारे पास नहीं फटक सकेगा।’ शिष्यों ने गुरुदेव के वाक्य पर विश्वास किया और दूसरे दिन स्नान-सन्ध्या से निवृत्त होकर हाथ जोड़े हुए वे गुरु के समीप आये और हिंसक जन्तु-निवारक मन्त्र की जिज्ञासा की। भगवान व्यासदेव ने यही ‘बर्हापीडं नटवरवपुः’ वाला श्लोक बता दिया। शिष्यों ने श्रद्धाभक्ति सहित इसे कण्ठस्थ कर लिया और सभी साथ मिलकर जब-जब जंगल को जाते तब-तब इस श्लोक को मिलकर स्वर के साथ पढ़ते। उनके सुमधुर गान से नीरव और निर्जल जंगल गूँजने लगता और चिरकाल तक उसमें इस श्लोक की प्रतिध्वनि सुनायी पड़ती। एक दिन अवधूतशिरोमणि श्रीशुकदेव जी घूमते-फिरते उधर आ निकले। उन्होंने जब इस श्लोक को सुना तो वे मुग्ध हो गये। शिष्यों से जाकर पूछा- ‘तुम लोगों ने यह श्लोक कहाँ सीखा?’ शिष्यों ने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया- ‘हमारे कुलपति भगवान व्यासदेव ने ही हमें इस मन्त्र का उपदेश दिया है। इसके प्रभाव से हिंसक जन्तु पास नहीं आ सकते।’ भगवान शुकदेव जी इस श्लोक के भीतर जो छिपा हुआ अनन्त और अमर बनाने वाला रस भरा हुआ था, उसे पान करके पागल-से हो गये। वे अपने अवधूतपन के सभी आचरणों को भुलाकर दौड़े-दौड़े भगवान व्यासदेव के समीप पहुँचे और उस श्लोक को पढ़ाने की प्रार्थना की। अपने विरक्त परमहंस पुत्र को इस भाँति प्रेम में पागल देखकर पिता की प्रसन्नता का पारावार नहीं रहा। वे शुकदेव जी को एकान्त में ले गये और धीरे से कहने लगे- बेटा! मैंने इसी प्रकार अठारह हजार श्लोकों की परमहंससंहिता ही बनायी है, तुम उसका अध्ययन करो।’ इन्होंने आग्रह करते हुए कहा- ‘नहीं पिता जी! हमें तो बस, यही एक श्लोक बता दीजिये।’ भगवान व्यासदेव ने इन्हें वही श्लोक पढ़ा दिया और इन्होंने उसी समय उसे कण्ठस्थ कर लिया। अब तो ये घूमते हुए उसी श्लोक को सदा पढ़ने लगे। |