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श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी
5. व्यासोपदेश
इतिहास -आर्यशास्त्रों में दो ही इतिहास या महाकाव्य माने गये हैं। एक तो भगवान् व्यासकृत महाभारत और दूसरा भगवान वाल्मीकिकृत आदिकाव्य रामायण। इन दो ही महाग्रन्थों में सम्पूर्ण जगत् का इतिहास भरा पड़ा है। सभी रस, सभी विषय, जितनी भी कथाओं की कल्पना हो सकती है वे सब इन दोनों ग्रन्थों में संक्षेप और विस्ताररूप से वर्णन की गयी हैं। इन महाग्रन्थों में आर्यजाति के महापुरुषों का ही इतिहास नहीं है, किन्तु सम्पूर्ण जगत् का इतिहास भरा पड़ा है। जिस प्रकार गंगा, चमुना, समुद्र, पर्वत, ग्रह, नक्षत्र- ये सृष्टिके अंग हैं उसी प्रकार ये ग्रन्थ भी नित्य और सनातन हैं। जैसे पृथ्वी पर जन्म धारण करने वाला इच्छा से अथवा अनिच्छा से बिना श्वास लिये रह नहीं सकता, उसी प्रकार सभ्य सभ्य जाति के ज्ञानपिपासु पुरुष इन महाकाव्यों के ज्ञानोपार्जन के बिना रह ही नहीं सकते, फिर चाहे वे प्रत्यक्षरूप से इन ग्रन्थों का अध्ययन करें अथवा इनके आधार पर बनाये हुए अन्य भाषा के ग्रन्थों से। वे इस ज्ञान से वंचित रह ही नहीं सकते, क्योंकि नित्य सनातन ज्ञान तो एक ही है और उसका व्याख्यान युग के अन्त में व्यासरूप से भगवान् ही कर सकते हैं। इसलिये भगवान् व्यासदेव प्रतिज्ञा करके कहते हैं- ‘जो मैंने महाभारत में वर्णन किया है वही सर्वत्र है, जिसका यहाँ वर्णन नहीं हुआ, उसका कहीं वर्णन हो ही नहीं सकता।’ हिन्दूजाति आदिकाल से इन प्राचीन आख्यानों को सुनती आयी है। ये आख्यान अनादिकाल से ऐसे ही चले आये हैं और अन्त तक इसी तरह चले जायँगे, इसलिये इनका श्रवण सदा करते रहना चाहिये।
पुराण-पुराण अनादि हैं और असंख्य हैं, किन्तु भगवान् व्यासदेव ने उन्हें अठारह भागों में संग्रह कर दिया है। इनमें छोटे-से-छोटे पुरुषार्थ का तथा परम-से-परम पुरुषार्थ का वर्णन है। शौच कैसे जाना चाहिये, शौच के अनन्तर कितनी बार बायें हाथ को, कितनी बार दायें हाथ को तथा दोनों हाथों को मिलाकर धोना चाहिये, कुल्ला कितनी बार कहना चाहिये, दाँतुन कितनी अंगुल का हो इत्यादि छोटे-से-छोटे विषयों से लेकर मोक्ष तक का वर्णन पुराणों में किया गया है। पुराण ही आर्यजाति के असली प्राण हैं। प्राणों के बिना प्राणियों का जीना सम्भव हो भी सकता है, किन्तु पुराणों के बिना आर्यजाति जीवित नहीं रह सकती। पुराणों का श्रवण आदिकाल से होता आया है। इस सम्पूर्ण जगत् के उत्पन्नकर्ता भगवान् ब्रह्मदेव ने ही ऋषियों को पुराणों का उपदेश किया। इसलिये पुराण सम्पूर्ण ज्ञान के भण्डार हैं। कल्याण की इच्छा रखने वाले पुरूशों को पुराणों का श्रवण नियमित रूप से करना चाहिये।
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