श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी44. धीर-भाव
अब तो बाजार में संकीर्तन के सम्बन्ध में भाँति-भाँति की अफवाहें उड़ने लगीं। कोई कहता- ‘इनके जोर-जोर से चिल्लाने से भगवान भी नाराज हो जायँगे और इनके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण देश में दुर्भिक्ष पड़ने लगेगा।’ कोई उसकी बात का नम्रता के साथ खण्डन करता हुआ कहता- ‘यह तो नहीं कह सकते कि भगवान नाराज जो जायँगे, वे तो घट-घटव्यापी अन्तर्यामी हैं, सबके भावों को जानते हैं और सबकी सहते हैं, किंतु यदि वे धीरे-धीरे नाम-स्मरण करें तो क्या इससे पुण्य न होगा? रातभर ‘हा-हा’, ‘हू-हू’ मचाते रहने से क्या लाभ?’ उसी समय कोई अपने हृदय की जलन को शान्त करने के भाव से द्वेषबुद्धि से कहता- ‘अब दो-ही-चार दिनों में इन्हें अपनी भक्ति और संकीर्तन का मजा मिल जायगा। श्रीवास की खैर नहीं है।’ इन सभी बातों को श्रीवास पण्डित भी सुनते। रोज-रोज सुनने से उनके मन में भी कुछ-कुछ भय उत्पन्न होने लगा। वे सोचने लगे- ‘गौड़ देश का राजा हिन्दू तो है नहीं। हिन्दू-धर्म का विरोधी यवन है, यदि वह ऐसा करे तो कोई आश्चर्य नहीं, फिर हमारे बहुत-से हिन्दू भाई ही तो संकीर्तन के विरुद्ध क़ाज़ी के पास जाकर शिकायत कर आये हैं। ऐसी स्थिति में बहुत सम्भव है, हम सब लोगों को भाँति-भाँति के कष्ट दिये जायँ।’ लोगों के मुख से ऐसी-ऐसी बातों सुनकर कुछ भोले भक्त तो बहुत ही अधिक डर गये। वे श्रीवास पण्डित के पास आकर सलाह करने लगे कि अब क्या करना चाहिये। कोई-कोई तो भयभीत होकर यहाँ तक हने लगे कि यदि ऐसा ही हो तो थोड़े दिनों के लिये हम लोगों को देश छोड़कर चले जाना चाहिये। उन सबकी बातें सुनकर श्रीवास पण्डित ने कहा- ‘भाई! अब जो होना होगा सो होगा। श्रीनृसिंह भगवान सब भला ही करेंगे। |