श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी4. भक्त-वन्दना
शालग्राम की बटिया चाहे छोटी हो या बड़ी सभी एक-सी पूज्य हैं, इसलिये ये सभी भक्त एक ही भाँति पूज्य और मान्य हैं, इनके चरणों में प्रणाम करने से ही मनुष्य कल्याण-मार्ग का पथिक बन सकता है। इनके अतिरिक्त वर्तमान समय में जो भगवान के नामों का संकीर्तन करते हैं, लिखकर प्रचार करते हैं या जो स्वयं दूसरों से कराते हैं उन सभी नामभक्तों के चरणों में मेरा प्रणाम है। जो भगवान के गुणों का श्रवण करते हैं, जो भगवन्नाम का कीर्तन करते हैं, जो हर समय भगवत-रूप का स्मरण करते हैं, जो भगवान की पाद-सेवा करते हैं, जो भगवत-विग्रहों का अर्चन करते हैं, जो देवता, द्विज, गुरु, भगवत-भक्तों और भगवत-विग्रहों को नमन करते हैं, जो भगवान के प्रति सख्यभाव रखते हैं, जिन्होंने भगवान को आत्मनिवेदन कर दिया है उन सभी भक्तों के चरणों में मेरा कोटि-कोटि नमस्कार है। जो सम्प्रदायों के अन्तर्भुक्त हैं अथवा जो सम्प्रदायों में नहीं हैं, जो ज्ञाननिष्ठ हैं, जो देशभक्त हैं, जो जनतारूपी जनार्दन की सेवा करते हुए नाना भाँति की यातनाएँ सह रहे हैं, जिन्होंने देश की सेवा में ही अपना जीवन अर्पण कर दिया है, जो किसी भी प्रकार से जनता की सेवा कर रहे हैं, उन सभी भक्तों के चरणों में मेरा बार-बार प्रणाम है। वर्तमान काल में जितने भक्त हैं, जो हो चुके हैं अथवा जो आगे होंगे उन सभी भक्तों के चरणों की मैं बार-बार वन्दना करता हूँ। भक्त ही भगवान के साकाररूप हैं, भगवान की शक्ति का विकास पूर्णरूप से भक्त के ही शरीर में होता है। भक्तों का शरीर पार्थिव होते हुए भी चिन्मय है। वे साक्षात भगवत्स्वरूप ही हैं। भक्तों की चरणवन्दना करने से ही सब प्रकार के विघ्न मिट जाते हैं- भक्ति भक्त भगवन्त गुरु, चतुर्नाम वपु एक। |