श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी40. कृपा की प्रथम किरण
यह सुनकर कि श्रीराम-कृष्ण भूखे बैठे हैं, उनकी अधीरता का ठिकाना नहीं रहा। जिनके दर्शनों की चिरकला से इच्छा थी, जिनकी मनोहर मूर्ति के दर्शन के लिये नेत्र छटपटा-से रहे थे, वे ही श्रीकृष्ण-बलराम भूखे हैं और भोजन की प्रतीक्षा कर रहे हैं, इस बात से उन्हें सुख-मिश्रित दुःख सा हुआ। वे जल्दी से भाँति-भाँति के पकवानों को थालों में सजाकर श्रीकृष्ण के समीप जाने के लिये तैयार हो गयीं। उनके पतियों ने बहुत मना किया, किंतु उन्होंने एक भी न सुनी और प्रेम में मतवाली हुई जल्दी से श्रीकृष्ण के समीप पहुँचने का प्रयत्न करने लगीं। उस समय भगवान खूब सज-धजकर ठाट के साथ खड़े-खड़े उसी ओर देख रहे थे कि कोई आती है या नहीं। भगवान व्यासदेव जी ने बड़ी ही सुन्दरता के साथ भगवान के उस मधुर गोपवेश का सजीव और जीता-जागता चित्र खींचा है। भगवान का उस समय का वेश कैसा है, उनका शरीर नूतन मेघ के समान श्याम रंग का है। उस पर वे पीताम्बर धारण किये हुए हैं, गले में वनमाला शोभित हो रही है। मस्तक पर मोरपंख का मनोहर मुकुट शोभित हो रहा है, सम्पूर्ण शरीर को सेलखड़ी, गेरू, पोतनी मिट्टी, यमुना-रज आदि भाँति-भाँति की धातुओं से रँग लिया है। कहीं गेरू की लकीरें खींच रखी हैं, कहीं यमुना-रज मल रखी है, कहीं पर सेलखड़ी घिसकर उनकी बिन्दियाँ लगा रखी हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण शरीर को सजा लिया है। कानों में भाँति-भाँति के कोमल-कोमल पत्ते उरस रखे हैं। सुन्दर नटका-सा वेश बनाये एक मित्र के कन्धे पर हाथ रखे हुए हैं। उनकी काली-काली घुँघुराली लटें सुन्दर गोल कपोलों के ऊपर लटक रही हैं। मन्द-मन्द मुसकराते हुए उसी और देख रहे हैं। भगवान के ऐसे मनोहर वेश को देखकर कौन सहृदय पुरुष अपने आपे में रह सकता है? आचार्य रत्नगर्भ का कण्ठ बड़ा ही कोमल और सुरीला था, वे बड़े लहजे के साथ प्रेम में गद्गद होकर इस श्लोक को पढ़ने लगे- बस, इस श्लोक का सुनना था कि महाप्रभु प्रेम में उन्मत्त-से हो गये। जोरों के साथ जहाँ बैठे थे, वहीं से उछले और उसी समय मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। उन्हें न शरीर का होश है न स्थान का। वे बेहोश पड़े जोरों के साथ लम्बी-लम्बी साँसें ले रहे थे, थोड़ी देर में कहने लगे- ‘आचार्य! मेरे हृदय में प्रेम का संचार कर दो, कानों में अमृत भर दो। फिर से मुझे श्लोक सुना दो। मेरा हृदय शीतल हो रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भा. 10/23/22