श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी40. कृपा की प्रथम किरण
आज उन्होंने उधर जाकर वन में गौओं की बहुत खोज की, कहीं भी पता न चला तो वे छाक को लेकर घर लौट आयीं। इधर सभी गोप भूख के कारण तड़फड़ा रहे थे। उन सबने सलाह करके निश्चय किया कि कनुआ और बलुआ से इस बात को कहना चाहिये। वे अवश्य इसका कुछ-न-कुछ प्रबन्ध करेंगे। सभी ग्वाल-बाल प्यार से भगवान को तो ‘कनुआ’ कहा करते थे और बलदेव जी को ‘बलुआ’ के नाम से पुकारते थे। ऐसा निश्चय करके वे भगवान के समीप जाकर कहने लगे- ‘भैया कनुआ! तैंने अघासुर, बकासुर, शकटासुर आदि बड़े-बड़े राक्षसों को बात-की बात में मार डाला। बालकों के प्राण हरने वाली पूतना के भी शरीर में से तैंने क्षणभर में प्राण खींच लिये, किंतु भैया! तैंने इस राँड़ भूख को नहीं मारा! यह राक्षसी हमें बड़ी पीड़ा पहुँचा रही है, तैंने हमारी समय-समय पर रक्षा की है, हमारे संकटों को दूर किया है। आज तू हमारी इस दुःख से भी रक्षा कर। हमें खाने के लिये कहीं से कुछ वस्तु दे।’ गोपों की इस बात को सुनकर भगवान अपने चारों ओर देखने लगे, किंतु उन्हें खाने की कोई भी वस्तु दिखायी न दी। उस वन में कैथ के भी पेड़ नहीं थे। यह देखकर भगवान कुछ चिन्तित-से हुए। जब उन्होंने बहुत दूर तक दृष्टि डाली तो उन्हें यमुना जी के किनारे कुछ वेदज्ञ ब्राह्मण यज्ञ करते हुए दिखायी दिये। उन्हें देखकर भगवान गोप-बालकों से बोले- ‘तुम लोग एक काम करो। यमुना-किनारे वे जो ब्राह्मण यज्ञ कर रहे हैं, उनके पास जाओ और उनसे कहना- ‘हम कृष्ण और बलराम के भेजे हुए आये हैं, हम सब लोगों को बड़ी भूख लगी है, कृपा करके हमें कुछ खाने के लिये दे दीजिये।’ वे तुम्हें भूखा समझकर अवश्य ही कुछ-न-कुछ दे देंगे। रास्ते में ही चट मत कर आना। यहाँ ले आना। सब साथ-ही-साथ बाँटकर खायेंगे। भगवान के ऐसा कहने पर वे गोप-ग्वाल उन ब्राह्मणों के समीप पहुँचे। दूर से ही उन्होंने यज्ञ करने वाले उन ब्राह्मणों को साष्टांग प्रणाम किया और यज्ञ-मण्डप के बाहर ही अपनी-अपनी लकुटी के सहारे खड़े होकर दीनता के साथ वे कहने लगे- ‘हे धर्म के जानने वाले ब्राह्मणो! हम श्रीकृष्णचन्द्र और बलदेव जी के भेजे हुए आपके पास आये हैं, इस समय इस सभी को बड़ी भारी भूख लगी हुई है, कृपा करके यदि आपके पास कुछ खाने का सामान हो तो हमें दे दीजिये। जिससे कृष्ण-बलराम के साथ हम अपनी भूख को शान्त कर सकें। |