श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी37. नदिया में प्रत्यागमन
नियत समय पर सदाशिव पण्डित, मुरारी गुप्ता, नीलाम्बर चक्रवर्ती तथा श्रीमान पण्डित आदि सभी मुख्य-मुख्य गण्यमान्य भद्रपुरुष प्रभु की यात्रा का समाचार सुनने शुक्लाम्बर ब्रह्मचारी के स्थान पर गंगातीर आ पहुँचे। थोड़ी देर में प्रभु भी आ पहुँचे। आते ही इन्होंने वही राग अलापना आरम्भ कर दिया। कहने लगे- ‘भैया! मुझे श्रीकृष्ण से मिला दो, मेरा प्यारा कृष्ण कहाँ चला गया? हाय रे! मेरा दुर्भाग्य! मेरा श्रीकृष्ण मुझसे बिछुड़ गया! मुझे बिलखता ही छोड़ गया।’ इतना कहते-कहते ये मूर्च्छित होकर गिर पड़े। इनकी ऐसी दशा देखकर भीतर घर में छिपे हुए गदाधर भी प्रेम में विह्वल होकर मूर्छा आने के कारण पृथ्वी पर गिर पड़े और जोरों से रुदन करने लगे। कुछ काल के अनन्तर प्रभु की मूर्छा भंग हुई वे कुछ काल के लिये प्रकृतिस्थ हुए, किन्तु फिर भारी वेदना उठने के कारण जोरों से चीत्कार मारकर रुदन करने लगे। इनके रुदन को देखकर वहाँ जितने भी मनुष्य बैठे थे, सभी फूट-फूटकर रोने लगे। सबके रुदन से आकाश गूँजने लगा। क्रन्दन की ध्वनि से आकाशमण्डल भर गया। बहुत-से दर्शनार्थी आ-आकर खड़े हो गये। उनकी आँखों से भी अश्रु बहने लगे। इस प्रकार शुक्लाम्बर का घर रुदन के कारण कोलाहलपूर्ण हो गया। कुछ काल के अनन्तर फिर प्रभु सुस्थिर हुए। उन्हें कुछ-कुछ बाह्यज्ञान होने लगा। स्थिर होने पर प्रभु ने शुक्लाम्बर जी से पूछा- ‘ब्रह्मचारी जी! घर के भीतर कौन है?’ प्रेम के साथ ब्रह्मचारी जी ने कहा- ‘आपका गदाधर है।’ ‘गदाधर’ इतना सुनते ही वे फिर फूट-फूटकर रोने लगे। रोते-रोते कहने लगे- ‘गदाधर! भैया! तुम ही धन्य हो। मनुष्य जन्म का यथार्थ फल तो तुमने ही प्राप्त किया है, हम तो वैसे ही रह गये। हमारी तो आयु वैसे ही बरबाद हुई।’ इतना कहकर फिर वही ‘हा कृष्ण! हा अशरणशरण! हा पतितपावन! कहाँ चले गये।’ फिर अधीर होकर लोगों के पैरों पर अपना सिर रख-रखकर कहने लगे- ‘भैया! मुझ दुखिया के ऊपर दया करो! मेरे दुःख को दूर करो। मुझे श्रीकृष्ण से मिला दो। मेरे प्राण उन्हीं से मिलने के लिये तड़प रहे हैं।’ प्रभु के इन दीनता भरे वाक्यों को सुनकर सभी का हृदय फटने लगा। सभी प्रेमावेश में आकर रुदन करने लगे। सभी अपने आपे को भूल गये। इस प्रकार रुदन और विलाप करते हुए शाम हो गयी और सभी अपने-अपने घर लौट आये। |