श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी36. प्रेम-स्त्रोत उमड़ पड़ा
निमाई पण्डित नवीन उल्लास और आनन्द के साथ मन्त्र-दीक्षा लेने के लिये तैयार हो गये। इनके सभी साथियों ने उस दिन दीक्षोत्सव के उपलक्ष्य में खूब तैयारियाँ की थीं। नियत समय पर पुरी महाशय आ गये। उनकी पद-धूलि इन्होंने मस्तक पर चढ़ाई और स्वस्त्ययन के पुण्य-श्लोक पढ़कर और भगवान के मधुर-मंजुल नामों का संकीर्तन करने के अनन्तर पुरी महाशय ने इनके कान में ‘गोपीजनवल्लभाय नमः’ इस दशाक्षरमन्त्र का उपदेश कर दिया। मन्त्र के श्रवणमात्र से ही ये मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े और इन्हें अपने शरीर का बिलकुल ही होश नहीं रहा। साथियों ने भाँति-भाँति के उपचार करके इन्हें सावधान किया। बहुत देर के अनन्तर इन्हें कुछ होश हुआ। तब तो इनकी विचित्र ही दशा हो गयी। कभी तो खूब जोरों के साथ हँसते, कभी रोते और कभी ‘हा कृष्ण! हा पिता!’ ऐसा कहकर जोरों से रुदन करते। कभी यह कहते हुए कि ‘मैं तो श्रीकृष्ण के पास व्रज में जाऊँगा’ व्रज की ओर भागते। इनके साथी इन्हें पकड़-पकड़कर लाते, किन्तु ये पागलों की भाँति उनसे अपने शरीर को छुड़ा-छुड़ाकर भागते। कभी फिर उसी भाँति जोरों से प्रलाप करने लगते। रोते-रोते कहते- ‘प्यारे! मुझे छोड़कर तुम कहाँ चले गये? मेरे कृष्ण! मुझे अपने साथ ही ले चलो।’ इतना कहकर फिर जोरों से रोने लगते। |