हिन्दू धर्म में 'चूड़ाकरण (मुडंन, शिखा) संस्कार' अष्टम संस्कार है। अन्नप्राशन संस्कार करने के पश्चात् चूड़ाकरण-संस्कार करने का विधान है। यह संस्कार पहले या तीसरे वर्ष में कर लेना चाहिये।
- मनुस्मृति[1]के कथनानुसार द्विजातियों का पहले या तीसरे वर्ष में (अथवा कुलाचार के अनुसार) मुण्डन कराना चाहिये- ऐसा वेद का आदेश है। इसका कारण यह है कि माता के गर्भ से आये हुए सिर के बाल अर्थात केश अशुद्ध होते हैं। दूसरी बात वे झड़ते भी रहते हैं। जिससे शिशु के तेज़ की वृद्धि नहीं हो पाती है। इन केशों को मुँडवाकर शिशु की शिखा (चोटी) रखी जाती है। शिखा से आयु और तेज़ की वृद्ध होती है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मनुस्मृति (2।35
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