चितै राधा रति-नागर-ओर -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


चितै राधा रति-नागर-ओर।
नैन-बदन-छबि यौ उपचति, मनु ससि अनुराग चकोर।।
सारस रस अचवन कौ मानौ, फिरत मधुप जुग जोर।
पान करत कहूँ तृप्ति न मानत, पलकनि देत अकोर।।
लियौ मनोरथ मानि सफल ज्यौ, रजनि गऐ पुनि भोर।
‘सूर’ परस्पर प्रीति निरंतर, दंपति हैं चितचोर॥1761॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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