चितवनि रोकै हुँ न रही -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


चितवनि रोकै हुँ न रही।
स्याम सुंदर-सिंधु-सनमुख, सरिता उमँगि बह।।
प्रेम-सलिल-प्रवाह भँवरनि, मिति न कबहुँ लही।
लोभ-लहर-कटाच्छ, घूँघट-पट-करार टही।।
थके पल पथ, नावधीरज परति नहिन गही।
मिली ‘सूर’ सुभाव स्यामहिं, फेरिहू न चही।।1763।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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