चले सब गाइ चरावन ग्वाल।
हेरी टेर सुनत लरिकनि के, दौरि गए नँदलाल।
फिरि इत-उत जसुमति जो दैखै, दृष्टि न परै कन्हाई।
जान्यौ जात ग्वाल संग दौरयौ, टेरति जसुमति धाई।
जात चल्यौ गैयनि के पाछैं, बलदाऊ कहि टेरत।
पाछैं, आवति जननी देखो, फिरि-फिरि इत कौं हेरत।
बल देख्यौ मोहन कौं आवत, सखा किए सब ठाढ़े।
पहुँची आइ जसोदा रिस भरि, दोउ भुज पकरे गाढे़।
हलधर कह्यौ, जान दे मो सँग, आवहिं आज सबारे।
सूरदास बल सौं कहै जसुमति, देखे रहियौ प्यारे।।413।।