चलि सखि तिहि सरोवर जाहिं -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग देवगंधार





चलि सखि, तिहिं सरोवर जाहिं।
जिहिं सरोवर कमल कमला, रवि बिना बिकसाहिं।
हंस उज्‍जल पंख निर्मल, अंग मलि-मलि न्‍हाहिं।
मुक्ति-मुक्‍ता अनगिने फल, तहाँ चुनि-चुनि खाहिं।
अतिहिं मगन महा मधुर रस, रसन मध्‍य समाहिं।
पदुम-बस सुगंध-सीतल, लेत पाप नसाहिं।
सदा प्रफुलित रहैं, जल बिनु निमिष नहिं कुम्हिलाहिं।
सघन गुंजत बैठि उन पर भौंरहू बिरमाहिं।
देखि नोर जु छिलछिलौ जग, समुझि कछु मन माहिं।
सूर क्‍यौं नहिं चलै उड़ि तहँ, बहुरि उड़िबौ नाहिं।।338।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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