चलि री मुरली बजाई कान्ह जमुन तीर।
तजि कुल की कानि लाज गुरुजन की भीर।।
जमुना जल थकित भयौ बछ न पियै छीर।
सुर विमान थकित भए थकित कोकिल कीर।।
देह की सुधि बिसरि गई बिसरयौ तन चीर।
मातु पिता बिसरि गए बिसरे बालक बीर।।
मुरली धुनि मधुर बजै कैसै धरौ धीर।
'सूरदास' मदन मोहन जानत हौ पर पीर।। 37 ।।