चतुर नारि सब कहतिं बिचारि।
रोमावली अनूप बिराजति, जमुना की अनुहारि।
उर-कलिंद तैं धँसि जल-धारा, उदर-धरनि परबाह।
जाति चली धारा ह्वै अध कौं, नाभी-ह्लद अवगाह।
भुजा दंड तट, सुभग घाट घट, बनमाला तरु कूल।
मोतिनि-माल दुहूँवा मानौ, फेन लहरि रस-फूल।
सूर स्याम-रोमाबलि की छबि, देखत करतिं बिचार।
बुद्धि रचतिं तरि सकतिं न सोभा, प्रेम बिबस ब्रजनार।।637।।