चकित भई ग्‍वालिनि-तन हेरौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग गौरी



चकित भई ग्‍वालिनि-तन हेरौ।
माखन छाँड़ि गई मथि वैसैंहि, तब तैं कियौ अबेरौ।
देखै जाइ मटुकिया रीती, मैं राख्‍यौ कहुँ हेरि।
चकित भई ग्‍वालिनि मन अपनैं, ढूँढति घर फिरि फेरि।
देखति पुनि-पुनि घर के बासन, मन हरि लियौ गोपाल।
सूरदास रस भरी ग्‍वालिनी, जानै हरि कौ ख्‍याल।।271।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः