चकित भई हरि की चतुराई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


चकित भई हरि की चतुराई। हमहिं छली इन कुँवर कन्हाई।।
कहा ठगोरी देखत लाई। धिरवति है कहि भली बनाई।।
एक सखी हलधरवपु काछौ। चली नील पट ओढ़े आछौ।।
स्याम मिलन ताकौ तहँ आए। अग्रज जानि चले अतुराए।।
मिले साँकरी ब्रज की खोरी। ढूँकी रही जहाँ तहँ गोरी।।
गह्यौ धाइ भुज दोउ लपटानी। दौरि परा सब सखी सयानी।।
निरखि निरखि तरुनी मुसुकानी। एक निलज, इक रही लजानी।।
कहा रही करि सकुच दिवानी। अब इनकी जनि राखौ कानी।।
गारि नारि सब देहिं सुहानी। नंद महर लौ जाति बखानी।।
उतरयौ 'सूर' स्याम-मुख-पानी। गई लिवाइ जहँ राधा रानी।।2878।।

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