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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीचंद्रावली-लीला
(श्लोक)
अर्थ- जो दिवस-काल में ‘हे स्याम! हा सुंदरवर! हा मनोहर! हे कंदर्प-कोटि-ललित! अहो चतुर-सिरोमनि!’ ऐसें उत्कंठायुक्त सब्दन सौं बारंबार गान करें हैं, वे आकुल नयनी श्रीराधिका मोपै कब प्रसन्न होयँगी?
(दोहा)
चंद्रावली- (द्वार पै जाय कैं टेर लगावैं) अजी, कहूँ गोपाल है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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