चंद्रावलि धाम स्याम भोर भऐं आए।
इत रिस करि रही बाम, रैनि जागि चारि जाम, देख्यौ जो द्वार स्याम, ठाढ़े सुखदाए।।
मंदिर तैं रही निहारि, मनहीं मन देति गारि, ऐसे कपटी, कठोर, आए निसि बीते।
रिस नहीं सकी सम्हारि, बैठी चढ़ि द्वार वारि, ठोढ़े गिरधारि निरखि, छबि नख सिख ही तैं।।
बिनु गुन बनी हृदयमाल, ता बिच नखछत रसाल, लोचन दोउ दरस लाल जिय सौं रिस बाढ़ी।
जावक रँग लग्यौ भाल, बंदन भुज पर बिसाल, पीक पलक अधर झलक बाम प्रीति गाढ़ी।।
क्यौं आए कौन काज, नाना करि अंग साज, उलटे भूषन सिंगार निरखत हौं जाने।
ताही कैं जाहु स्याम, जाकैं निसि बसे धाम, मेरै गृह कहा काम 'सूरदास' गाने।।2501।।