घर घर तै सुनि गोपी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


घर घर तै सुनि गोपी, हरि सुख देखन आईं।
निरखि स्याम ब्रजनारि, हरषि सब निकट बुलाईं।।
सुनत नारि मुसुकाइ, बाँस लीन्हे कर धाईं।
ग्वालनि जेरी हाथ, गारि दै तियनि सुनाईं।।
सीला नामक ग्वालि, अचानक गहे कन्हाई।
एक सुनत गई धाइ, बीस तीसक तहँ आई।
टूटि परी चहुँ पास, घेरि लीन्हौ बलभाई।।
इक पट लीन्हौ छीनि, मुरलिया लई छिड़ाई।
लोचन काजर आँजि, भाँति सौ गारी गाई।।
जबहिं स्याम अकुलात, गहति गाढ़ै उर लाई।
चंद्रावति सौं कह्यौ, गूँथि कच सौंह दिवाई।।
हा हा करियै लाल, कुँवरि के पाइ छुवाई।
यह सुख देखत, नैन, 'सूर' जन बलि बलि जाई।।2881।।

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