ग्वालिनी भूली तन-धन-धाम -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग शुद्ध सारंग - तीन ताल


ग्वालिनी भूली तन-धन-धाम।
फूली फिरत बावरी इत-‌उत निरखत मोहन-छबि अभिराम॥
डोलत सर-सरिता-तट, कानन-कुंज सदा एकाकिनि बाम।
जहँ दृग जाय तहाँ नित दीखत सोहन प्रियतम-बदन ललाम॥
एक दिना भटकत इकंत बन, दृष्टि ग‌ई नभ दिसि सुठि ठाम।
अपलक नैन मुग्ध भ‌इ ठाढ़ी निरखत छबि मन-मोहन स्याम॥
देस काल सब भये कृष्णमय, छये कृष्णघन तत्त्व तमाम।
धन्य ग्वालिनी जाके दृग-पंकज बन मधुप बसे घन-स्याम॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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