ग्वारिनि मोहीं पर सतरानी।
जौ कुलीन अकुलीन भईं हम, तुम तौ बड़ी सयानी।।
नाना रूप बखान करति हौ, काहैं बृथा रिसानी।
तुमहिं कहौ कह दोष हमारौ? खोटी क्यौं पहिचानी।।
जो स्रम मैं अपनैं तन कीन्हौ, सो सब कहौं बखानी।
सूरदास-प्रभु बन-भीतर तैं,तब अपनैं घर आनी।।1331।।