गौर सुभग शशि अमित दीप्ति शुचि -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव स्वरूप माधुरी

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राग आसावरी - ताल कहरवा


गौर सुभग शशि अमित दीप्ति शुचि, श्याम पराजित-‌अमित-‌अनंग।
दिव्य सलिल पूरित घन शोभित श्याम, दिव्य विद्युत्‌‌के संग॥
अंग-‌अंग विकसित तरंग नित, नव-माधुर्य सुधारस सार।
कलित कुसुम सौरभित मनोहर, झूल रहे दोनों उर-हार॥
कुटिल भृकुटि, चंचल दृग करते नित्य परस्पर आकर्षण।
दो बन पृथक्‌ प्रगाढ़ प्रेमवश करते नित्य प्रेमवर्षण॥
दोनों दोनों के नित प्रेमी, दोनों दोनों के शुचि प्रेष्ठ।
दोनों दोनों को नित देते, सहज प्रेम-सुख-रस अति श्रेष्ठ॥
दोनों में है परम त्याग की पराकाष्ठा से पर-त्याग।
दोनों दोनों के सुसेव्य प्रिय, दोनों शुचि सेवक बड़भाग॥
रमणी-रमण कौन है, इसका नहीं कहीं कुछ भी है ज्ञान।
रमण-हीन नित रमण निरन्तर, सहज रुचिर रति रम्य महान॥
दोनोंके चरणारविन्दपर न्यौछावर नित मन-मति-प्राण।
दोनों बने रहें नित मेरे, नित्य-प्रिय प्राणोंके प्राण॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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