गोविंद, अब न दूरि वह काल -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सारंग




गोविंद, अब न दूरि वह काल।
दीनानाथ, देवकी-नंदन, भक्‍तबछल गोपाल।
मैं भीषम, तुम कृष्‍न सारथी, किये पीतपट लाल।
बहुत सनाह समर सर बेधे, ज्‍यौं कंटक नल-नाल।
तुम्‍हरैं चरन-कमल मो मस्‍तक, कत ताकौं सर-जाल ?
सूरदास जन जानि आपनौ, देहु अमय की माल।।278।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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