गोपी प्रेम -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 42

गोपी प्रेम -हनुमान प्रसाद पोद्दार

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अधिकार और कर्तव्य

परंतु एक बात ध्यान में रखने की है कि ऐसी लीला का नायक सिवा भगवान् के और कोई भी नहीं हो सकता। गोपीभाव से भगवान् की उपासना करने का अधिकार सभी वैराग्य और प्रेम सम्पन्न जीवों को है। गोपीभाव न तो केवल स्त्रियों के ही लिये है, न स्त्री के-जैसी पौशाक पहनकर स्त्री सजने की ही जरूरत है। जरूरत है गोपियों को आदर्श मानकर उनके जैसा प्रेम भाव हृदय में उत्पन्न करने की। यह उपासना भावना सिद्ध है, वेष-सिद्ध नहीं है। जिसमें ऐसा अपार्थिव निष्काम अनन्य प्रेम होगा, वही गोपीभाव से उपासना कर सकेगा। परंतु उपास्य केवल परमात्मा ही होगें।

गोपीभाव के उपासकों की धारणा में सभी लोग भावदेह से प्रकृति हैं और पुरूषप्रधान अप्राकृत नवीन मदन व्रजेन्द्रनन्दन ही सबके एकमात्र पति-परम पति हैं। एक श्रीनन्दनन्दन को छोड़कर वे दूसरे पुरूष की कल्पना ही नहीं कर सकते। ‘सपनेहुँ आन पुरूष जग नाहीं।‘ इस दिव्य प्रेमराज्य में श्रीकृष्ण के सिवा अन्य किसी भी पुरूष का और श्रीकृष्ण प्रेम-रसभावितमति भक्तरूपा रमणी के सिवा अन्य किसी नारी का प्रवेशाधिकार या प्रवेशसामर्थ्य नहीं है। भगवान् की आनन्दमयी शक्ति के इस दिव्य-प्रेम-सदन में दूसरे साधारण न-नारियों का प्रवेश सर्वथा निषिद्ध है। इस महामन्दिर में प्रवेश करने वाले को दरवाजे पर पहरा देने वाली सखी को प्रवेश पत्र दिखलाना पड़ता है और श्रीकृष्ण-प्रेम-रस में डूबी हुई बुद्धिरूपी उस प्रवेशपत्री को वही प्राप्त कर सकता है जो अपना तन-मन-धन प्रियतम प्रभु के अर्पण कर, सर्वथा कामशून्य होकर, काम-क्रोध-लोभादि विकारो से रहित होकर, वैराग्यरूप परम सुन्दर वस्त्रों को धारणकर, दैवी गुणों के अलंकरारों से सुसज्जित होकर प्रेम की वेदी पर अपनी बलि चढ़ा देता है-

प्रथम सीस अरपन करै, पाछे करै प्रबेस
ऐसे प्रेमी सुजनको, है प्रबेस यहि देस।।

अतएव इसमें कोई भी मनुष्य कदापि श्रीकृष्ण नहीं बन सकता, चाहे वह महान् आचार्य, उपदेशक, प्ररमी, जीवन्मुक्त या दिव्य भाव वाला ही क्यों न समझा जाता हो; इसलिये यदि कोई मनुष्य श्रीकृष्ण बनकर गोपीभाव से उपसना कराने का दावा करे तो उससे सदा दूर रहना चाहिये। खास करके स्त्रियों के द्वारा गोपीभाव से अपनी उपासना की बात कहने वाले मनुष्य को तो दुराचारी ही मानना चाहिये। साधक पुरूष के लिये तो स्त्री की बात दूर रही, स्त्रियों के संग करने वाले का संग भी त्याज्य है।

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