गोपी घर तें निकसी बेचन दधि -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग अल्हैया - तीन ताल


गोपी घर तें निकसी बेचन दधि सिर धर भर कर मटकी।
’ले‌उ स्याम-गोबिंद’-पुकारत फिरत बावरी-सी भटकी॥
रँगी स्याम-रँग, बृत्ति-दृष्टि-मधुकरी स्याम-सरसिज अटकी।
मुग्ध-मनोहर छबि पिय, बलिहारी फहरानि पीत पट की॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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