गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 18व्रजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्ण चन्द्र साक्षात् परब्रह्म हैं, ‘अवतारा ह्यसंख्येया हरेः सत्त्वनिधेर्द्विजाः। एक महा-विराटस्वरूप पुरुषावतार से अनेक प्राकर के अवतार होते हैं। जैसे सरोवर से सहस्रों नहरें निकलती हैं वैसे ही, महा-विराट् पुरुष अविनाशी से अनेक प्रकार के अवतारों की सृष्टि होती है, विराट् का कारण हिरण्यगर्भ एवं हिरण्यगर्भ का कारण अव्याकृत है किन्तु आनन्दकन्द परमानन्द भगवान् श्रीकृष्णचंद्र स्वयं ही परात्पर परब्रह्मस्वरूप है। जैसे, भागवत-शब्द के आधार पर भगवान् श्रीकृष्णचंद्र अव्याकृत, हिरण्यगर्भ एवं महाविराट् के अधिष्ठान हैं, साक्षात् अवतारी हैं, वैसे ही, वाल्मीकि रामायण के आधार पर ‘भवान्नारायणो देवः’[2]‘आदिकर्ता स्वयंप्रभुः’[3] भगवान् राम भी परात्पर परब्रह्म-स्वरूप हैं, अधिष्ठान हैं, स्वयं अवतारी हैं। एतावता सगुण साकारस्वरूप भगवान् कृष्णचंद्र परमानन्द अथवा मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् राघवेन्द्र रामचन्द्र दोनों ही की उपासना सामान्यतः मुक्ति-प्रदायिनी है। |