गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 390

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 14

देश-कालानुसार प्रत्येक ग्राम्य-धर्म परिसीमित होता है परन्तु ग्राम्य-धर्मवत् आभासित भगवत्-परिष्वंग निरन्तर वर्द्धमान है, यही उसकी विशेषता है। यर्थार्थतः ही, भगवत्-तत्त्व-साक्षात्कार से प्राणी आज्ञानात्मक प्रपंच से उपरत हो जाता है; जैसे-जैसे तत्त्व के साक्षात्कार में स्पष्टता एवं दृढ़ता आती जाती है वैसे-वैसे ही बुद्धि निर्मल होती जाती है; निर्मल चित्त से ही भगवत्-स्वरूपानुभूति, भगवत्-तादात्म्य सम्भव है। भगवन् श्रीकृष्णचन्द्र, मदनमोहन, श्याम-सुन्दर के मंगलमय मुखचन्द्र का अधरामृत ही सुरत-वर्धक महौषध है। ‘अधर एवं अमृत’ अधर ही अमृत है, तात्पर्य की फलस्वरूप हैं। भगवत् पदारविन्द एवं हस्तारविन्दों में साध्य-स्वरूपता के साथ ही साथ साधन-रूपता भी है परन्तु भगवत्-मुखारविन्द में केवल साध्य-स्वरूपता, फल-स्वरूपता ही है। ‘शोक-नाशनं’ भगवत्-अधरामृत सम्पूर्ण शोक-मोह का उन्मूल करने वाला है एतावता देव-भोग्य से भी उत्कृष्ट है। देव-भोग्य अमृत को प्राप्त कर शोक-मोह की आत्यन्तिक निवृति सम्भव नहीं होती परन्तु भगवत् अधरामृत को प्राप्त कर लेने पर प्राणी के सम्पूर्ण शोक-मोह का समूल-उन्मूलन हो जाता है।

‘स्वरिवेणुना सुष्ठु चुम्बितम्’

अर्थात्, नादयुक्त वेणु द्वारा सम्यकतः चुम्बितम। गोपाङनाओं को श्याम-सुन्दर, मदन-मोहन, व्रजेंद्र-नंदन श्रीकृष्णचन्द्र में उत्कृष्ट अनुरागजन्य ममत्व है। एतावता वे अनुभव करती हैं कि भगवत्-अधरामृत पर एकमात्र उन्हीं का अधिकार है। गोपाङना-जनों के इस स्वभूत-अधरामृत को अनिधिकारी वेणु भी पान करता है, यह उनकी ईर्ष्या का हेतु बन जाता है। वेणु पुमान् है। रस-शास्त्र के सिद्धान्तानुसार भी नायिका ही नायक के अधरामृत की एकमात्र अधिकारिणी है। पुमान् वेणु शुष्क बाँस, कीचक ही है तथापि धार्ष्टर्द्धवशात् ही ‘स्वरित’ उच्च स्वर से गोते हुए अधरामृत का चुम्बन करता है; वह प्रेमानन्द में विभोर है। वेणु द्वारा सुष्ठु चुम्बित होने पर भी यह अधरामृत उच्छिष्ट नहीं होता; जैसे मधु-मक्खियों का उच्छिष्ट होने पर भी मधु उच्छिष्ट नहीं होता। भगवत्-अधरामृत् अचूक रसायन, महौषध है।

‘इतररागविस्मारणं नृणां’

भगवत-अधरामृत रसायन इतर सम्पूर्ण रागों का विस्मारक है। जैसे, सूर्यनारायण के सम्मुख अन्य सम्पूर्ण प्रकाश धूमिल पड़ जाते हैं किंवा एक बार विशिष्ट रसायन सेवन कर लेने पर अन्य औषधियाँ प्रभावहीन हो जाती हैं, वैसे ही, भगवत्-अधरामृत रूप-रसायन, महौषध पान कर लेने पर अन्य सम्पूर्ण रसान्वयी पदार्थ नीरस हो जाते हैं।

‘वितर वीर नस्तेऽधरामृतम्’

व्रजाङनाएँ कर रही हैं, हे वीर! अपने अधरामृत को हमारे लिए प्रदान करें। हे श्याम-सुन्दर! मदन-मोहन। आप दानवीर हैं; दानवीर के लिए न तो पात्रापात्र का विचार होता है और न उत्कृष्टातिउत्कृष्ट वस्तु भी अदेय होती है; एतावता, आप अपने इस अमूल्य अधरामृत को भी हमारे लिये प्रदान करें।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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