गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 293

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 9

अर्थात काम-रूपेण-विख्याता हृद-ग्रन्थि भगवत्-साक्षात्कार से तथा कर्म रूप बन्धन ज्ञानाग्नि से नष्ट हो जाते हैं। भगवत्-कथामृत-पान में निरत व्यक्ति को भक्ति, विरक्त एवं भगवत्- प्रबोध साथ-ही साथ होते चलता है; जैसे मधुर मनोहर पक्वान्न के भक्षण से ‘तुष्टिः पुप्टिः क्षुदपायोऽनुघासम्’[1] पुष्टि एवं क्षुधा-निवृत्ति प्रत्येक ग्रस के साथ होती चलती है। स्नातन गोस्वामी ‘कल्मषापहम’ का अर्थ करते हैं कि जो व्यक्ति भगवत-कथामृत पान करने में निरत हैं उसके लिए संसार एवं संसार के मूलभूत कारण शुभाशुभ कर्म ही बाधित हो जाते हैं। जैसे देव-भोग्य अमृत रोग-दोष-निवारक एवं बल-पुष्टि का आधान कर्ता है और साथ ही परमामृत रसमय होने के कारण स्वयं ही फल-स्वरूप भी है, वैसे ही भगवत-कथामृत भी संसार एवं उसके मूलभूत कारण शुभाशुभ कर्म का निवारक एवं सर्वार्थं प्रापक है। ‘कविभिः सर्वार्थप्रापकत्वेन ईडितं संस्तुतम’ व्यास, वाल्मीकि आदि महर्षियों ने सर्वपुरुषार्थ साधकत्वेन, सर्वपुरुषार्थ- प्रापकत्वेन आप के कथामृत का संस्तवन किया। ‘श्रृण्वन् रामकथानादं को न याति परांगतिम’ अर्थात-वह कौन व्यक्ति है जो राम-कथा-नाद को पान कर परम-गति को प्राप्त नहीं होगा? तात्पर्य कि आपके कथामृत का पान कर प्राणी निश्चय ही परमगति को प्राप्त होता है; साथ ही ‘पुत्रार्थी लभते पुत्रम् धनार्थी लभते धनम’ पुत्रैषणा, वित्तैषणा आदि विविध लौकैषणा की भी प्राप्ति है। देव-सुधा भी कल्मष-हनन में समर्थ नहीं है अतः कवि कहता है ‘क्व कथा लोके क्व काचः क्व मणिर्महान्?’ कथामृत एवं देवसुधा में तुलना करते हुए कविवर शुकदेवजी कहते हैं ‘कहो, कहाँ तो ये कथामृत और कहाँ वह देव-सुधा जैसे महामणि और काँच में कोई तुलना सम्भव नहीं’ वैसे ही भगवत कथामृत और देव–सुधा में भी में भी कोई तुलना सम्भव नहीं क्योंकि भगवत-कथामृत-कल्मषापह है परन्तु देवसुधा को पान करने वाले, नन्दन-वन, कामधेनु एवं कल्पवृक्ष का भोग करने वालों की तो संसार एवं उसके मूलभूत अविद्या-काम-कर्मों की निवृत्ति नहीं होती। श्री पंचशिवाचार्य जी कहते हैं:-

स्वल्पसङर सपरिहरः सप्रत्यवभर्ष’ इति, स्वल्पसङरः ज्योतिष्टोमादिजन्मनः
प्रधानापूर्वस्य स्वल्पेन पशुहिंसादिजन्मना अनर्थहेतुनाऽयूर्वेणसङरः।
सपरिहरः कियतापि प्रायश्चित्तेन परिहर्तुशक्यः, अथ च प्रमादतः
प्रायशिचत्तमपिनाचरितंतदा प्रधानकर्मविपाकसमये स पच्यते।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीम0 भा0 11/2/42

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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