गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 8इससे वेदान्त वाक्यों में आरोपित अन्यपरता खण्डित हो जाती है; तात्पर्य कि जब आप के मंगलमय, सुगण, साकार श्रीविग्रण का प्रादुर्भाव नहीं होता तब ब्रह्म-विज्ञान बोधक श्रुतियाँ अननुष्ठापकत्त्व-लक्षण-अप्रामाण्य-दोष से दूषित रहेंगी; ब्रह्म-विज्ञान-बोधक श्रुतियों द्वारा ब्रह्म-साक्षात्कार होने पर ही वह अनुभूत सत्य सिद्ध होगा अन्यथा ब्रह्म-साक्षात्कार केवल मात्र पोथी-पन्ने का प्रलय ही होगा। अस्तु, आप मंगलमय, सगुण, साकार स्वरूप में प्रकट हों। कथा- प्रसंगानुसार, गोपाङनारूप श्रुतियाँ कहती हैं, ‘हे विभो! म्ंगलमय सगुण, साकार स्वरूप धारण कर अपनी मधुर वाणी ‘मधुरया गिरा’ एवं श्रेष्ठ वाक्यों ‘वल्गु वाक्यया’ द्वारा साधकों के चित्त को अपनी और आकृर्षित कर लें। आप की वाणो ‘बुध मनोज्ञा’ विज्ञ-जनों के चित्त को आकर्षित करने वाली है अथवा ‘अबुघ मनोज्ञा’ अबुध, चेतना-शून्य पशु-पक्षी आदिकों को भी सम्मोहित कर लेने वाली है। भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के मंगलमय मुख-निःसृत वेणु गीत-पीयूष के संसर्गं से वृन्दावन के पशु-पशी तथा वृक्ष-लतादिक, चेतनाचेतन, बुधाबुध सब भगवत्-स्वरूप से आकृष्ट हुए। ‘पुष्करेक्षण’ पुष्कर-तुल्य नयन; अमल-कमल-दल के तुल्य है नयन जिसके ऐसा जो मनोरम मुख-कमल युक्त आपका दिव्य स्वरूप है उसका दर्शन देकर प्रजा का आकर्षण करें। ‘अधर सीधुना अधरे वेदान्ते, अधर भागे वेदान्ते’ अपने अधर भाग में उत्पन्न ज्ञान रूप सीधु अमृत से इनका आप्यायन एवं उपद्वलन करें। ‘अपाम सोमममृता अभूम’ आदि अर्थवाद रूपिणी भगवद्-वाणी है। ‘बुधानाम् मनोज्ञा’, लौकिक व्यवहार में दक्ष ही बुध है। आप की अर्थवाद रूपिणी बुधजनों के लिए रुचिकर है। इस अर्थवाद रूप वाणवी के कारण मोह को प्राप्त हुए बुधजनों का ‘अधर-सीधुना’ वेदान्त-महावाक्य जन्य ज्ञानामृत से आप्यायन करें। |