गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 6निष्कर्ष की भगवत्-कर्तृक भक्त-भजन, भगवदानुग्रह से ही जीव भगवदुन्मुख हो पाता है। गोपांगनाएँ भी कह रही हैं, हे सखे! हम तो आपको खोजती हुई वन-वन भटक रही हैं तथापि जब तक आप स्वयं ही अनुग्रह कर प्रत्यक्ष नहीं हो जाते तब तक हम आप के दर्शन भी क्योंकर पा सकतीं हैं। अतः स्वानुग्रह पूर्वक आप शीघ्र ही प्रत्यक्ष हो जावें। ‘सोहं तवाङ्घ्रयुगतोस्म्यसतां दुरापं। अर्थात हे प्रभो! हे नाथ! आपके अनुग्रह से ही हम आज आप के मंगलमय चरणार विन्दों की शरण आये हैं। जब प्राणी के संसरण से अपवर्ग का अवसर उपस्थित होता है तब आपको कृपा से ही सत्-पुरुषों का आश्रय प्राप्त होता है; सत्-पुरुषों द्वारा प्रेरित प्राणी भगवदुन्मुख होकर संसार-दुःख-दावानल से मुक्त हो जाता है। ‘बिनु हरि कृपा मिलहीं न संता। और- जन्म-जन्मान्तर के अपूर्व-वश भगवदनुग्रह एवं भगवदनुग्रह वश प्रभु-चरणारविन्दों में उत्तरोत्तर प्रीति होती चलती है। जीव के स्वकर्म जन्य अपूर्व तथा भगवदनुग्रह में परस्पर हेतु हेतुमद्भाव सम्बन्ध बन जाता है। |