गोपी गीत -करपात्री महाराजश्रीगोपी -गीततासामाविरभूच्छौरिः स्मयमानमुखाम्बुजः। अर्थात आनन्दकन्द, परमानन्द, व्रजचन्द्र, साक्षात्-मन्मथमन्मथ, श्रीकृष्णचन्द्र उन व्रज-वनिताओं का दुःख अपहरण करते हुए उनके मध्य में आविर्भूत हुए। अस्तु, आचार्यगण कहते हैं कि जैसे इस गीत के माहात्म्य से गोपाङ्गना-जनों के लिए भगवत्-दर्शन सुलभ हो गया वैसे ही जो भी इस गीत का श्रद्धा-भक्ति-समन्वित-श्रवण मनन करेंगे अथवा विवेचन में प्रवृत्त होंगे उनके लिए भी नन्दनन्दन, श्री नवलकिशोर श्रीकृष्णचन्द्र के दर्शन सुलभ हो जाएँगे। व्रजधाम का विस्तार बहुत अधिक है। व्रज-साहित्य के अनुसार ‘मध्ये गोवर्धनं यत्र’ गोवर्धन पर्वत के चतुर्दिक् प्रसारित भूमि-खण्ड ही श्रीमद् वृन्दावनधाम है जो व्रजधाम से उदव्याप्त है। व्रजधाम की स्तुति से ही गोपाङ्गनाएँ अपने गीता का प्रारम्भ करती हैं। श्री नन्दनन्दन, व्रजकिशोर के प्रेम में विभोर भावुकों का सर्वस्व श्री व्रजतत्त्व महामहिम, अलौकिक एवं अपार वैभवशाली तथा प्रकृति-प्राकृत-प्रपंचातीत है। भक्तजन भगवत्-प्राप्ति की आकांक्षा से इस भगवत-धाम की प्रदक्षिणा करते हैं। गोपाङ्गनाएँ भी स्तवन द्वारा ही व्रजधाम की वाणीमय परिक्रमा करती हैं। |