गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 5किंवा ‘श्रीकरग्रहम्’ कहकर गोपांगनाएँ भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति व्यंग्य भी करती हैं। श्रीमन्नारायण विष्णु लक्ष्मीपति हैं; उनको अन्य के दुःख-द्रारिद्रय का अनुभव नहीं होता। लक्ष्मीवन्तो न जानन्ति प्रायेण परवेदनाम्। अर्थात्, नारायण शेष के धराभराक्लान्त होते हुए भी शेष पर सुखपूर्वक सोते हैं क्योंकि वे लक्ष्मीपति हैं। लक्ष्मीपति को दूसरों की वेदना का अनुभव नहीं होता। गोपांगनाएँ भी कह रही हैं, हे कान्त! आप तो लक्ष्मीपति हैं अतः आप हमारे सन्ताप को नहीं जानते; यदि आप हमारे सन्ताप को जानते तो अवश्य ही प्रकट हो जाते। अथवा ‘धनवन्तो विजानन्ति करुणात्परवेदनाम्’ जो करुणामय लक्ष्मीवान् हैं वे दूसरों की वेदना को भी जानते हैं। ‘सुदामानं वासदेवश्चकार धनदोपमम्’ (सुभा. भाण्डा.) आप करुणामय लक्ष्मीपति हैं अतः आपने सुदामा को धनद, कुबेर बना दिया। गोपांगनाओं में भगवान् श्रीकृष्णकृत प्रश्न का पुनः स्फुरण होता है; वे अनुभव करती हैं कि मानो श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि हे गोपांगनाओ! तुम लोग बहुसंख्यक हो, तुम्हारी कामनाएँ भी विविध हैं; हम अकेले सबकी पूर्ति कैसे कर पायेंगे? उत्तर देती हुई वे कह रही हैं-‘विरचिता भयं चरणमीयुषां संसृतेर्भयात्।’ हे प्रभो! आपके मंगलमय हस्तारविन्द संसार से भयभीत हो आपकी शरण आने वाले अनन्तानन्त प्राणियों के अभयदाता हैं। आपके मंगलमय चरणारविन्द शरणागत प्राणी के आध्यात्मिक, आधिदैविक एवं आधिभौतिक त्रिविध संतापों को निर्मूल कर देने वाले हैं, फिर केवल हम लोगों के संताप-निवारण में ही किस अशक्यता का विचार हो रहा है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सुभा. भाण्डा. पृ. 64