गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 5अनन्तकोटि ब्रह्माण्डनायक, अखिलेश्वर सर्वेश्वर सर्वशक्तिमान् आनन्दकन्द परमानन्द प्रभु का व्रजधाम में यशोदानन्दन वासुदेव श्रीकृष्ण-स्वरूप में प्राकट्य विशेष चमत्कृतियुक्त है। एक कथा है-भगवान श्रीकृष्ण मथुरा पधारे, गोपांगनाएँ उनके विरहजन्य तीव्रताप में दग्ध होने लगीं; किसी भक्त ने कहा, ‘गोपांगनाओं! ऐसी कातर क्यों हो रही हो? मथुरा कौन दूर है? चलो हमारे संग, हम उनका दर्शन करा लाएँ।’ अत्यन्त तीव्र उत्कंठावश कुछ गोपांगनाएँ मथुरा जाने को तत्पर हो गईं। मथुरा जाने पर उन्होंने देखा कि श्रीकृष्ण राजसभा में दिव्य सिंहासन पर विराजमान हैं। अतः वे वहाँ से तुरन्त लौट आईं। उन्होंने अनुभव किया कि यह हमारे मदन-मोहन, श्यामसुन्दर, वेणुवादक, कालो कमलीवाले गोपाल श्रीकृष्ण नहीं, अपितु कोई अतुलित ऐश्वर्यधारी राजराजेश्वर श्रीकृष्ण हैं। नन्दनन्दन, यशोदोत्संग-ललित, मदन-मोहन, श्यामसुन्दर, वेणुवादक गोपाल श्रीकृष्ण स्वरूप ही गोपांगनाओं के ध्येय, ज्ञेय, परमाराध्य हृदयेश्वर-स्वरूप हैं। अस्तु, वे कह रही हैं, हे कान्त! आप वृष्णिकुल-प्रसूत हैं, वृष्णि-वंशावतंस स्वरूप ही हम लोगों का अभिलषित है। एतावता हमारे सिर पर आपका मंगलमय श्रीकर-सरोरुह विन्यस्त हो। विशिष्ट भक्त अपने उरःस्थल में ही भगवत्-प्रादुर्भाव की कामना करते हैं। ब्रह्मरन्ध्र में सहस्रदल कमल में सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमानन्दकन्द प्रभु एवं भगवत्-हृदयेश्वरी, सर्वेश्वरी, षोडशी भगवती विराजमान हैं; उनके मंगलमय दिव्य श्री अंग से लोकोत्तर अमृत-धारा का अभिव्यन्जन होता है। इस अभिव्यन्जन से अन्तःकरण, अन्तरात्मा का उपोद्वलन एवं आप्यायन होता है; सर्व प्रकार की न्यूनताओं का उन्मूलन एवं सम्पूर्ण दिव्य शक्तियों का सन्निधान होता है। इसी तरह, अनाहत चक्र, द्वादश दल कमल में भी अखिल ब्रह्माण्ड नायक प्रभु एवं उनकी हृदयेश्वरी भगवती का ध्यान किया जाता है; अतः भक्तजन अपने उरःस्थल को ही भगवत्-स्वरूप से अलंकृत करने की आकांक्षा करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भा. 10। 14। 1