गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 188

Prev.png

गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 5

विभिन्न अवस्थाओं में अथवा विभिन्न वृत्तियों के उद्बुद्ध होने पर कुछ कामनाओं का सावशेष उन्मूलन हो जाता है। उदाहरणतः जैसे अबोध शिशु में स्त्री-कामना अथवा नायकभाव उदित नहीं होता तथापि समय पाकर अनिवार्यतः उद्बुद्ध हो जाता है किंवा क्रोधाकाराकारित वृत्ति के उद्बुद्ध होने पर कामवृत्ति का उपशमन हो जाता है परन्तु अनुकूल समय पाकर कामवृत्ति का पुनः उदय हो जाता है।
उस्तु, ‘कण्टकेन कण्टकोद्धार न्यायतः’ भगवदनुराग से अन्य सम्पूर्ण सांसारिक रागों का निरवशेष बाध हो जाता है। “विषस्य विषमौषधम्’ विष ही विष की औषधि है, विष से ही विष का शमन होता है -

‘कामं दहन्ति कृतिनो ननु रोषदृष्ट्या रोषं दहन्तमुत तेन दहन्त्यसह्यम्।
सोऽयं यदन्तरमलं निविशन् बिभेति कामः कथं नु पुनरस्य मनः श्रयेत।।’[1]

अर्थात्, कोई कृती क्रोध का सहारा लेकर काम को जला देते हैं किन्तु काम के दग्ध होने पर भी उनके क्रोध का नाश नहीं हो पाता। अस्तु, यह उन्मूलन सावशेष ही है। भगवत्-स्वरूप-विज्ञान से विषय के अस्तित्व का ही बाध हो जाता है; जेसे, रज्जु-स्वरूप-विज्ञान से सर्प का बाध हो जाता है वैसे ही तत्त्व-विज्ञान से पदार्थ का ही बाध हो जाता है। जैसे शुक्ति-साक्षात्कार से रजत का बाध हो जाता है वैसे ही ब्रह्मरूप-साक्षात्कार से नामरूप क्रियात्मक विश्व का ही बाध हो जाता है एतावता विश्व-विषयिणी कामना का स्वभावतः समूल उन्मूलन हो जाता है। अस्तु, भगवद्-भजन ही सम्पूर्ण लौकिक कामनाओं के समूल उन्मूलन का एकमात्र कारण है। व्रजेन्द्रनन्दन गोपाल श्रीकृष्ण ब्रह्मस्वरूप साक्षात् निरावरण, परात्पर परब्रह्म हैं एतावता उनके हस्तपंकज ‘कामदं’ हैं। कामजन्य सम्पूर्ण पाप-ताप के समूल उन्मूलन-हेतु ही गोपांगनाएँ अपने सिर पर सच्चिदानन्दघन भगवान् श्रीकृष्ण के करसरोरुह-विन्यास की आकांक्षा करती हैं।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीमद्भा. 2। 7। 7

संबंधित लेख

गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः