गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 5विभिन्न अवस्थाओं में अथवा विभिन्न वृत्तियों के उद्बुद्ध होने पर कुछ कामनाओं का सावशेष उन्मूलन हो जाता है। उदाहरणतः जैसे अबोध शिशु में स्त्री-कामना अथवा नायकभाव उदित नहीं होता तथापि समय पाकर अनिवार्यतः उद्बुद्ध हो जाता है किंवा क्रोधाकाराकारित वृत्ति के उद्बुद्ध होने पर कामवृत्ति का उपशमन हो जाता है परन्तु अनुकूल समय पाकर कामवृत्ति का पुनः उदय हो जाता है। ‘कामं दहन्ति कृतिनो ननु रोषदृष्ट्या रोषं दहन्तमुत तेन दहन्त्यसह्यम्। अर्थात्, कोई कृती क्रोध का सहारा लेकर काम को जला देते हैं किन्तु काम के दग्ध होने पर भी उनके क्रोध का नाश नहीं हो पाता। अस्तु, यह उन्मूलन सावशेष ही है। भगवत्-स्वरूप-विज्ञान से विषय के अस्तित्व का ही बाध हो जाता है; जेसे, रज्जु-स्वरूप-विज्ञान से सर्प का बाध हो जाता है वैसे ही तत्त्व-विज्ञान से पदार्थ का ही बाध हो जाता है। जैसे शुक्ति-साक्षात्कार से रजत का बाध हो जाता है वैसे ही ब्रह्मरूप-साक्षात्कार से नामरूप क्रियात्मक विश्व का ही बाध हो जाता है एतावता विश्व-विषयिणी कामना का स्वभावतः समूल उन्मूलन हो जाता है। अस्तु, भगवद्-भजन ही सम्पूर्ण लौकिक कामनाओं के समूल उन्मूलन का एकमात्र कारण है। व्रजेन्द्रनन्दन गोपाल श्रीकृष्ण ब्रह्मस्वरूप साक्षात् निरावरण, परात्पर परब्रह्म हैं एतावता उनके हस्तपंकज ‘कामदं’ हैं। कामजन्य सम्पूर्ण पाप-ताप के समूल उन्मूलन-हेतु ही गोपांगनाएँ अपने सिर पर सच्चिदानन्दघन भगवान् श्रीकृष्ण के करसरोरुह-विन्यास की आकांक्षा करती हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भा. 2। 7। 7