गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 181

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 4

हे सखे! तब आप ही वर्षपर्यन्त तत्-तत् ग्वाल-बाल के रूप में उनके घर में रहे। उस वर्ष में ही तत्-तत् गोपकुमारों से हमारा पाणिग्रहण हुआ, अतः सम्पूर्ण व्रजबधुएँ आपकी परिणीता ही हैं; एतावता, हमारी उपेक्षा कर आपका अन्तर्धान हो जाना सर्वथा असंगत ही है। हम आपकी परिणीताएँ आपके विप्रयोगजन्य तीव्र संताप से दग्ध हो रही हैं अतः हमारा संत्राण ही आपके लिए उचित है। जो जगत्राता है वह भी अपनी पारणीताओं का संत्राण न करे तो दीपक तले अँधेरा जैसे कहावत ही चरितार्थ होगी।

अनभिज्ञा गोपांगनाएँ कह रही हैं, हे व्रजेन्द्रनन्दन! कालिय-मर्दन, बकासुर-वध, पूतना-संहार, तृणावर्त्त-हनन, शकट-भंजन आदि अनेक लोकोत्तर लीलाओं के कारण हम अनुमान करती हैं कि आप केवल गोपिकानन्दन नहीं अपितु अखिल देहियों के अन्तरात्मा, सर्वद्रष्टा, सर्वसाक्षी हैं। तब भी सर्वान्तरात्मा, सर्वान्तर्यामी होते हुए भी आप गोपिकानन्दन भी हैं।

गोपांगनाओं में पुनः भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा किए गए प्रश्न का स्फुरण होता है। ‘समोऽहं सर्वभूतेषु’[1] हे गोपांगनाओं! ईश्वर सब भूतों में सम है। ‘न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः’[2] न मेरा कोई प्रिय है न कोई अप्रिय है तब तुम्ही लोगों से मेरा कौन विशेष नाता है? क्यों हम तुम्हारी रक्षा के लिए विशेषतः दीक्षित हैं? अपने उत्तर से इसका खण्डन करती हुई गोपांगनाएँ कहती हैं, हे सखे! सर्वात्मदृक् होते हुए भी आप व्रजेन्द्रनन्दन ही हैं।
‘विखनसार्थितो विश्वगुप्तये’ अर्थात् ‘विदुषा वेदार्थविचारकेण, पण्डितेन भवान् अर्थितः, मोक्षरूपेण भवानेव इष्यते; विशेषेण खनति वेदार्थान् विचारयतीति विखनास्तेन विखनसा।’ अर्थात्, वेदार्थ-विचारक विद्वान पण्डित द्वारा आप ही प्रार्थित हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गीता 9। 29
  2. गीता 9। 29

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
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14. गोपी गीत 12 336
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17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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