गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 177

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 4

ब्रह्मा द्वारा अभ्यर्चित होने पर विश्वकल्याण-हेतु ही आपका आविर्भाव हुआ अतः विश्ववर्तनी, विश्व में रहने वाली, विश्व की अंशभूता हम गोपांगनाओं का संरक्षण भी आपका परम कर्तव्य है। हे सखे! आप हमारी रक्षा-हेतु प्रकट हों। परन्तु ‘सात्वतां कुले, यादवानां कुले भवान् उदेयिवान् अवतीर्णः’ आप सात्वत् यादव-कुल में उत्पन्न हुए हैं। यह यादवकुल ही सच्छिद्र है, कंसादि-क्रूरजन-बहुल तथा भगवद्क्तिशून्य ‘शून्यप्राय’ है। यादव-कुल धर्मशील ‘यदोश्च धर्मशीलस्य नितरां मुनिसत्तम’ ही है तथापि भाव-विभोर गोपांगनाएँ व्यंग्योक्ति द्वारा कृष्ण को खिझाकर भी दर्शन देने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं।

‘यादवानाम् कुले विखनसार्थितो' का एक और भी अर्थ है। ‘विखनसा’ का लक्षणया अर्थ है ‘पितामहेन’ ‘प्लवग-सैन्यमुलूक जिता जितम्।’ ‘प्लवग-सैन्यं, वानर-सैन्यं, उलूकजिता, इन्द्रजिता मेघनादेन जितं’ उलूक का अर्थ है कौशिक, वेद-स्तुतियों में ‘कौशिक’ संज्ञा ‘इन्द्र’ के लिये प्रयुक्त हुई है। ‘विश्वगुप्तये’ अर्थात् विश्वरूप गोपकुल में; तात्पर्य कि सर्वपितामह बह्मा ने सम्पूर्ण विश्वरूप गोकुल के संरक्षण-हेतु आपके प्राकट्य की प्रार्थना की थी। अथवा यदुकुल के पूर्व-पुरुष आपके पितामह ने अपने सम्पूर्ण वंश की रक्षा की आकांक्षा से आपके आविर्भाव-हेतु कठोर तप किया था। साधारणतः भोक्तृत्व एवं कर्तृत्व समानाधिकरण्य ही होता है तथापि कहीं-कहीं इनमें भी पार्थक्य संभव हो जाता है।

‘और करे अपराध कोई, और पाव फल-भोग।
अति विचित्र भगवन्तगति, को जग जानहिं जोग।’

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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