गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 172

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 4

‘कं प्रमात्मकं सुखं क्षणे-क्षणे आचिनोतीति काचित्।’

अर्थात, जो प्रेमात्मक सुख का प्रतिक्षण आचयन करे वही ‘काचित्’ है; वृषभानुकुमारी, नित्य-निकुन्जेश्वरी, राजराजेश्वरी राधारानी ही भक्त-हृदय में क्षण-प्रतिक्षण अनुराग एवं आह्लाद-वर्धिका हैं अतः वे ही ‘काचित्’ हैं। ‘आराधितः वशीकृतः हरिः अनया’ वश में कर लिया है हरि को जिसने वह अलौकिक सौभाग्यशालिनी ‘अनया’, ‘एका’ आदि शब्दों से राधा ही अभिप्रेत है। ‘राधामितः गतः राधितः शकन्घ्वादित्वात्पररूपम्’ जैसे कथन में भी राधा का उल्लेख स्पष्टतः हुआ हैं कृष्णोपनिषद् गोपालतापनीयोपनिषद्, गर्गसंहिता, ब्रह्यवैवर्तपुराण, नारदपुराण आदि ग्रन्थों में अनेक स्थलों पर राधा का विशेष वर्णन प्राप्त है। वस्तुतः विभिन्न शास्त्रों के अर्थ का समन्वय करने पर ही शास्त्र का तात्पर्य सम्यक्तया प्रतिपादित होता है।

देवता लोग परोक्षप्रिय होते हैं। वेदों में कर्मकाण्ड का प्रतिपादन अस्सी हजार मन्त्रों में हुआ है; कर्म से उपासना सूक्ष्मतर है अतः उपासना का प्रतिपादन केवल सोलह हजार मन्त्रों में ही हुआ; कर्म और उपासना दोनों से ही सूक्ष्मतर है ज्ञान, ज्ञान का प्रतिपादन कुल चार हजार मन्त्रों में ही हुआ। राधातत्त्व सूक्ष्मतम है अतः इस तत्त्व का प्रतिपादन अल्प शब्दों में परोक्षतः ही किया गया है। उदाहरणतः-

‘तं इदन्द्रं सन्तमिन्द्र इत्याचक्षते।’[1]

अर्थात, ‘इदं सर्व नामरूपक्रियात्मकं जगत् आत्मस्वरूपेण अदर्शमित्युक्तवान् इदंकारास्पदम्।’ सम्पूर्ण विश्व-प्रपन्च को आत्मस्वरूप से जिसने देख लिया उसका नाम इदन्द्र है। सर्वान्तरात्मा हिरण्यगर्भ ने ही अपने-आपको सम्पूर्ण विश्व-प्रपन्च में रूप में देखा अतः हिरण्यगर्भ हो इदन्द्र है। इदन्द्र के एक ‘द’ को परोक्ष कर दिया अतः इदन्द्र ही इन्द्र कहलाये; लोकव्यवहारानुसार भी परोक्ष सम्बोधन ही मान्य होता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतरेयारण्यक 2। 4। 3

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
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2. प्रवेशिका 21
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4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
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7. गोपी गीत 5 185
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