गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 171

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 4

‘न खलु गोपिकानन्दनः’ मानिनी नायिका की उक्ति है। श्रृगार-सिद्धान्तानुसार दो प्रकार की नायिकाएँ मान्य हैं; एक दाक्षिण्यती नायिका जो सर्वथा प्रिय के अनुकूल आचरण करती हैं, दूसरी वाम्यवती जो परम-अनुरक्ता होते हुए भी सदा ही प्रिय के विपरीत आचरण करती हैं। वाम्यवती नायिका का प्रणय विशेषतः सरस होता है अतः श्रृंगारशास्त्रानुसार वाम्या का ही अधिकाधिक मान होता है। रासेश्वरी, नित्य-निकुंजेश्वरी, राधारानी परम-वामा हैं। रासलीला के अन्तर्गत गोपांगनाओं को अत्यन्त दर्प हुआ फलतः उनमें प्रतिकूल आचरण उत्थित होने लगे; दक्षिणा ने वामा का एवं वामा ने दक्षिणा का धर्म अपनाया; अपने अलौकिक सौभाग्यातिरेक के कारण परम-वामा राधारानी भी कह उठीं ‘नय मां यत्र ते मनः।’ अर्थात् ‘जहाँ आपका मन हो वहीं मुझे ले चलो’ अतः भगवान् श्रीकृष्ण अन्तर्धान हो गए।

कहा जाता है कि ‘श्रीमद्भागवत’ में राधारानी का उल्लेख नहीं है; वस्तुतः यह कथन निराधार है। ‘भागवत’ में राधारानी का उल्लेख परीक्षतः ही हुआ है। भगवान् श्रीकृष्ण किसी एक सखी के साथ अन्तर्धान हुए।

‘अनयाराधितो नूनं भगवान् हरिरीश्वरः।
यन्नो विहाय गोविन्दः प्रीती यामनयद् रहः।।’[1]

गोपांगनाएँ परस्पर कह रही हैं -

‘धन्या अहो अमी आल्यो गोविन्दाङ्घ्रयब्जरेणवः।।’[2]

अर्थात, हे सखो! जिस एक सखी को लेकर श्रीकृष्ण अन्तर्धान हुए हैं वही ‘परम सौभाग्यशालिनी है। उस सखी विशेष की तुलना में हमारा सौभाग्य नीरस है। श्लोक में प्रयुक्त ‘एका’ एवं ‘काचित्’ विशेषण राधावाचक है। ‘एका’ शब्द प्रधानार्थ में प्रयुक्त होता है; राधारानी ही सर्वाधिक प्रधाना है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीमद्भा. 10। 30। 28
  2. श्रीमद्भा. 10। 30। 29

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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