गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 4‘विषये ते महाराज महाव्यसनकर्शिताः। अर्थात भगवान राघवेन्द्र रामचन्द्र के वियोगजन्य तीव्र ताप से अयोध्या की नदियों का जल भी वैसे ही खौल उठा जैसे अदहन (चावल पकाने के लिए चढ़ाया हुआ जल) खौलता है। महाराज दशरथ के प्रति कहा जा रहा है ‘हे राजन्! आपके राज्य के सम्पूर्ण वृक्ष एवं लताएँ भी अपने पुष्प, शाखा, पल्लव, अंकुरादिकों के संग परिम्लान हो गये हैं, झुलस गये हैं। जब जड़ भी ऐसी दशा को प्राप्त हो रहे हैं तब चेतन की स्थिति का वर्णन कौन कर सकता है? भगवान् श्री राघवेन्द्र रामचन्द्र के समय की कथा तो निश्चय ही अकथ है जबकि आज भी ‘रामायण’ के पाठक को ‘अयोध्याकाण्ड’ के अन्तर्गत राम-वन-गमन का वर्णन पढ़ते हुए भाव-विह्वलता में अश्रुपात होने लगते हैं। किसी काल में महर्षि वाल्मीकि भी रोये थे। ‘अनर्घ राघव’ के रचयिता श्री मुरारि मिश्र, ‘उत्तर-रामचरित’ के रचयिता भूवभूति तथा ‘चम्पू रामायण’ के रचयिता राजा भोज कहते हैं कि - |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वाल्मीकि रामायण 2। 59। 4, 5
- ↑ तथाभूतामपि कथा निजकण्ठोक्त्या पुनः पुनः वर्णयन् महर्षिवाल्मीकिरेव श्रुतिधर्मरूपकोऽभूत्। (साहित्यमंजूषा)
- ↑ रामा. चम्पू. 3। 41