गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 158

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 4

‘नृणां निःश्रेयसार्थाय व्यक्तिर्भगवतो नृप।
अव्ययस्याप्रमेयस्य निर्गुणस्य गुणात्मनः।’[1]

अर्थात, निर्गुण, निराकार, निर्विकार, गुणात्मा, सर्वाधिष्ठान, अप्रमेय, सर्वसाक्षी, अनन्त ब्रह्माण्डनायक, परात्पर परब्रह्म प्राणिमात्र के कल्याण-हेतु ही अवतरित होते हैं।

‘कामं क्रोधं भयं स्नेहमैक्यं सौहृदमेव च।
नित्यं हरौ विदधतो, यान्ति तन्मयतां हिते।।’[2]

अर्थात, जैसे कोई दीपक-बुद्धि से भी चिन्तामण की ओर अग्रसर हो तो भी उसको प्राप्ति चिन्तामणि की ही होगी वैसे ही काम, क्रोध, भय, स्नेह आदि किसी भाव से भगवान् को भजने वाले को भी परात्पर परब्रह्म को ही प्राप्ति होगी। अतः हे प्रभो! आप द्वारा हमारा संत्राण होना ही चाहिए।
गोपांगनाएँ पुनः कल्पना करती हैं मानों भगवान् श्रीकृष्णचंद्र उनसे कह रहे हैं, 'यथावसरं भविष्यति’ ‘हे गोपांगनाओं! यथावसर तुम्हारा भी संत्राण हो ही जायगा।’ जैसे धरती में बोया बीज यथाकाल ही फलित होता है वैसे ही मुझमें तुम्हारी जो प्रीति है, भक्ति है, यह भी यथावसर ही फलित होगी; यथाकाल तुम्हें हमारा दर्शन मिलेगा और तुम्हारा परम कल्याण होगा। वे उत्तर दे रहीं है, प्रभो! आपका यह अवतार ‘सात्वतां कुले’ भक्तों के कुल में [3] हुआ है अतः आपको अवसर की प्रतीक्षा नहीं करनी होगी। इस अवतार विशेष में ईश्वरीय नियम-पालन का निर्बन्ध मान्य नहीं। गुरु-दक्षिणा-हेतु मृत गुरुपुत्र के जीव को आप यमपुरी से भी लौटा लाए; कथा है कि महर्षि सान्दीपनि से चतुष्षष्टि कलाओं एवं वेद-वेदांगों का अध्ययन कर लेने पर श्रीकृष्ण ने गुरु से दक्षिणा-हेतु प्रार्थना की।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीमद्भा. 10। 29। 14
  2. श्रीमद्भा. 10। 33। 50
  3. ‘सात्वतां’ शब्द के भक्तगण तथा यदुवंशी ये दोनों ही अर्थ हैं। भागवत(1। 2)आदि में भक्त अर्थ है।(9। 24) आदि में यदुवंशी।

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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