गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 3अहंकार का नाश ही भगवद्-दर्शन का, श्रीकृष्ण-प्राकट्य का आधार है। अपनी अपूर्णता, अज्ञता एवं अशक्तता का ज्ञान ही अहंकार-नाश का हेतु है। एतावता उत्तमातिउत्तम भक्त स्वभावतः ही अपनी अपूर्णता का, अपने दोषों का अधिकाधिक बोध करने लगता है। ‘विष्णुपुराण’ के मतानुसार भगवान् का उत्पादक, पालक एवं संहारक तीनों ही रूप चतुर्धा है। उत्पादक रूप में भगवान् सर्वान्तर्यामी चतुर्मुख ब्रह्मा प्रजापति एवं लौकिक माता-पिता स्वरूप हैं; पालक रूप में अन्तर्यामी, सर्वपाल, विष्णुस्वरूप, मन्वादि एवं तात्कालिक राजा स्वरूप हैं; मनु कहते हैं, ‘महती देवता ह्येषा नररूपेण तिष्ठति’ अर्थात्, राजा महती देवता ईश्वर ही नर रूप में प्रकट है। संहारक रूप में सर्व-संहारक रुद्र, यमराज एवं आधि-व्याधि हैं। गोपांगनाएँ कह रही हैं कि हे व्रजेन्द्रनन्दन! आप सर्वदा, सर्वथा, सर्वपालक, सर्वसखा, सर्वहितकारी, सर्वस्वामी हैं तथापि हम व्रज-बालाओं से आपका विशेष सम्बन्ध है। जैसे भगवान् विष्णु सबके पालक हैं तथापि विशेषतः लक्ष्मी पति हैं वैसे ही आप विशेषतः गोपिका-वल्लभ हैं। |