गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 127

Prev.png

गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 3

अर्थात तत्त्वविद्-जन उसको ही तत्त्व कहते हैं जो कि अद्वितीय ज्ञान है; स्वप्रकाश, अखण्ड, अनन्त जो ज्ञान है वही तत्त्व है। सम्पूर्ण वस्तु का बोध हो जाने पर जो अन्त में अवशिष्ट रह जाता है वह सर्वशेषी तत्त्व ही ब्रह्म, परमात्मा एवं भगवान आदि शब्दों से कहा जाता है। निराकार, निर्विकार, अद्वैत, अनन्त, अखण्ड, पूर्णसत्ता, परब्रह्म शब्द से अनन्त ब्रह्माण्ड का उत्पादक, पालक, संहारक, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सर्वेश्वर, परमात्मा शब्द से तथा अनन्त कल्याण गुण-गणों से विशिष्ट, अनन्त, सौन्दर्य माधुर्य सौरस्य, सौगन्ध्यादि गुणों से युक्त तत्त्व ही भगवान शब्द से व्यपदिष्ट है। अद्वितीय जो ज्ञान है वही तत्त्व है इस श्रुति से परब्रह्म का प्रतिपादन होता है। ‘यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते। येन जातानि जीवन्ति। यत्प्रयन्त्यभिसंविशन्ति। तद्विजिज्ञासस्व। तद्ब्रह्मेति।।’[1]

अर्थात जिसमें अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, स्थिति एवं विलय होता है वहाँ परात्पर ब्रह्म है। ‘यः सर्वज्ञः सर्ववित् यस्य ज्ञानमयं तपः।’[2] अर्थात् जो सर्वज्ञ, सामान्येन-सर्व-पदार्थ-ज्ञाता है वह सर्ववित् अर्थात् सर्वविशेषज्ञ है; यही ईश्वर का स्वरूप है। ‘ईशावास्य; ईष्टे अति ईशः, ईश्वरः।’ जो ईशन-कर्ता, नियन्त्रण, शासन-कर्ता है वही ईश्वर है। ईश शब्द का वाच्यार्थ है नियन्त्रण कर्ता, शासन-कर्ता परन्तु लक्ष्यार्थ शुद्ध स्वप्रकाश, अशेषविशेषातीत, निर्विशेष परात्पर ब्रह्म ही है। ‘ईशावास्यं’ अर्थात् ईश्वर के द्वारा सम्पूर्ण विश्व का व्यसन, आच्छादन हो; जिस प्रकार चन्दन और अगरु जैसे दिव्य सौगन्ध्य-सम्पन्न काष्ठ में भी जल एवं मृत्तिका के दीर्घकालीन संसर्ग से सड़ जाने पर दुर्गन्धि प्रकट हो जाती है वैसे ही अविद्या माया के संसर्ग से अनन्त सर्वाधिष्ठान स्वप्रकाश ब्रह्म में नाम-रूप-क्रियात्मक प्रपंच के अध्यारोप के कारण दुःखरूपता प्रादुर्भूत होती है। जैसे चन्दन-काष्ठ के पुनः निघर्षण से उस औपाधिक दौर्गन्ध्य का विनाश तथा स्वाभाविक सौगन्ध्य का प्रस्फुटन हो जाता है वैसे ही ‘ईशावास्यं’ ईश पद के लक्ष्यार्थ परात्पर ब्रह्म, ‘सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म’[3] की अपरोक्षानुभूति होने पर उपाधिजन्य 'दुःख जडं अनृतं' विश्व-प्रपन्च का बोध हो जाता है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तै. उ. 3।1
  2. मुं. 1।1।9
  3. तै.उ. 2।1।1

संबंधित लेख

गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः