गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 124

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 2

शक्ति एवं शक्तिमान् में वस्तुतः अभेद होते हुए किंचित् मात्र भिन्नता है अतः ‘सत् सरसिजं’-कहा-अर्थात्, जो सत् है, जो अभावरूप नहीं है, साथ ही, ‘साधुजातसत्सरसिजं अनिर्वचनीयोत्पत्तिमत् अज्ञानं तदेव आभासमानं’ अनिर्वचनीय है उत्पत्ति जिसकी ऐसा अज्ञानवत् प्रतीत होता है वह अनिर्वचनीय अज्ञान सरसिज ब्रह्म में हरने वाला अज्ञान। साधुजात सत्सरसिज और उसके उदर में रहनेवाली श्री ‘उभयमपि मुष्णाति इति श्रीमुट् अर्थात् साधुजातसत्सरसिजोदरश्रीमुट्तया श्रीमुषा’ अर्थात् अनादि अनिर्वचनीय अज्ञान और अनादि अज्ञान के उदर में रहने वाली श्री, वह श्री भगवद्-दर्शन से बाधित हो गई। तात्पर्य कि भगवत-स्वरूप-साक्षातकार होने पर सात्त्विक-असात्त्विक, अनुकूल-प्रतिकूल, राजस-तामस, ग्राह्याग्राह्य, यहाँ तक कि ऐश्वर्य, ज्ञान, वैराग्यादि सम्पूर्ण सदसद् वृत्तियाँ भी बाधित हो जाती हैं और एक अखण्ड, अनन्त, स्वप्रकाश भगवान ही अवशिष्ट रह जाते हैं।

‘न च पुनरावर्त्तते न च पनुरावर्त्तते’[1] ‘आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः’[2] आदि श्रुतियाँ व्रज-सीमन्तिनी, गोपांगना स्वरूप में तत्त्व-विवेचन करती हुई कह रही हैं, हे पूर्णतम! पुरुषोत्तम! हे सुरतनाथ! सर्व प्रकार के याचित, कामित पदार्थों को प्रदान करने वाले हे वरद! सर्व प्रकार के अभीष्टदाता, हे सर्वेश्वर! हे सर्व-प्राणिपरम-प्रेमास्पद! आपके दर्शन से अपरोक्ष साक्षातकार से अनादि अनिर्वचनीय अज्ञान और तत् तत् विषयाकाराकारित वृत्तियाँ दोनों का ही हनन कर देने वाले, बाध कर देने वाले विद्वान् का इस संसार में हनन बाध नहीं होता। अज्ञान साधुजात सत् है, अनिर्वचनीय उत्पत्तिवान् है। ‘सरसिजं’ यह अज्ञान ब्रह्म हद से उद्भूत है, ‘शरदुदाशये साधुजातसत्सरसिजोदरश्रीमुषा दशा।’ अज्ञान एवं अज्ञान के कार्यरूप उसकी श्री, दोनों का ही आपके ‘दृशा’ दर्शन से समूल उन्मूलन हो जाता है। अपरोक्ष भगवत-साक्षातकार से अनादि, अनिर्वचनीय अज्ञान एवं तज्जन्य विषयाकाराकारित वृत्तियों के बाधित हो जाने पर अखण्ड अनन्त निर्विकार परात्पर परब्रह्म ही प्रतिष्ठित हो जाता है फलतः सम्पूर्ण दुःखजाल का अन्त हो जाता है। अतः हे सुरतनाथ! हे वरद! शरद्कालीन स्वच्छ अगाध जलाशय सदृश हमारे अन्तःकरण में आपका अपरोक्ष साक्षातकार हो; आपके दर्शनमात्र से हमारा अज्ञान एवं तज्जन्य विषयाकाराकारित वृत्तियों का बाध हो जायगा। फलतः हमारे सम्पूर्ण दुःख समूल उन्मूलित हो जायेंगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. छा. 8।15।1
  2. बृ. उ. 2।4।5

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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