गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 114

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 2

यह लीला-शक्ति भगवान की परम-अन्तरंगा है। जिस प्रकार बीज में शाखा, पल्लव, पुष्प और फल सभी अंगों को उत्पन्न करने की अनेक शक्तियाँ रहती हैं उसी प्रकार महाशक्ति में ही विश्व-विकास की समस्त शक्तियाँ रहती हैं। तात्पर्य कि वह भगवदीय महामाया-शक्ति अनन्त शक्तियों का पुन्ज है। उसमें जिस प्रकार अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड और उसके अन्तर्वर्ती विचित्र भोग्य, भोक्ता और उनके नियामक आदि प्रपन्च को उत्पन्न करने की अनन्त शक्तियाँ हैं उसी प्रकार उन अनन्त कोटि ब्रह्माण्डों के अधीश्वर श्री भगवान के दिव्य मंगलमय-विग्रह में आविर्भूत होने के अनुकूल भी एक परम विशुद्धा, अन्तरंगा शक्ति है।

भगवान की अनिर्वचनीया आत्मयोग-भूता, महाशक्ति के अन्तर्गत होने के कारण अनिर्वचनीयता में अन्य प्रपन्चोत्पादनानुकूल शक्तियों के समान होने पर भी उनकी अपेक्षा कहीं अधिक स्वच्छ एवं दिव्य है। इस विलक्षण शक्ति का निर्देश पराशक्ति एवं अन्तरंग-शक्ति आदि शब्दों द्वारा भी किया जाता है। यह शक्ति भगवत-स्वरूप में प्रविष्ट रहती हुई ही उसके प्राकट्य का निमित्त होती है। जिस प्रकार उपाधिविरहित दाहकत्व-प्रकाशकत्व-रहित अग्नि के दाहकत्व-प्रकाशकत्व-संयुक्त दीपशिखादि रूप की अभिव्यक्ति में तैल तथा सूत्र आदि केवल निमित्तमात्र ही हैं किंवा जैसे तरंग-विरहित नीर-निधि के तरंगयुक्त होने में वायु केवल निमित्तमात्र ही है ठीक उसी प्रकार विशुद्ध लीला-शक्तिरूप निमित्त से शुद्ध परब्रह्म ही अनन्त-कल्याण-गुण-गण-विशिष्ट सगुण विग्रह में अभिव्यक्त होते हैं। तथापि उनका वह विग्रह वस्तुतः मूर्तिमान् शुद्ध परमानन्द ही है। उसमें उस दिव्य-शक्ति का भी निवेश नहीं, वह तो तटस्थ रूप से केवल निमित्तमात्र है। इसी से भगवान की सगुण मूर्ति में ‘आनन्दमात्र करपादमुखोदरादि’ ‘आनन्दमात्रैकरसमूर्तयः’[1]इत्यादि उक्तियाँ हैं।

विशुद्ध सत्त्व को निमित्त मानकर निर्विकार सच्चिदानन्दघन परब्रह्म ही कृष्णचन्द्र परमानन्दकन्द रासेश्वरी राधारानी एवं व्रज-सीमन्तिनी-जन आदि विभिन्न रूपों में प्रकट हो गया है अतः सम्पूर्ण लीला ही शुद्ध-निर्विकार एवं एकरस है; एतावता भागवत-भावना-भावित चित्त के सम्पूर्ण विकार भक्ति-रसामृतंसिंधु की विभिन्न लहरियाँ ही है; अस्तु, यह दर्प भी प्रभु को प्रिय है। गोपांगनाएँ कह रही हैं हे सुरतनाथ! इस मान को मनाने हेतु एवं अनुचित दर्प का प्रशमन करने हेतु आप शीघ्र ही प्रत्यक्ष हो जायँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री. भा. 10।13।54

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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