गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 109

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 2

श्रीवल्लभाचार्य के मतानुसार सृष्टि के दो प्रकार मान्य हैं; परार्थ एवं आत्मार्थ। प्रकृति के योग से परब्रह्म में जो रस-विशेषोल्लास हुआ वही परार्थ सृष्टि है। शुद्धाद्वैत-मतानुसार प्रकृति स्वतन्त्र तत्त्व नहीं, अपितु सच्चिदानन्द अद्वैत शुद्ध ब्रह्म का अंश ही है। सच्चिदानन्द भगवान में ही तीन भेद हो जाते हैं; प्रथमतः सदंशाश्रित प्रकृति किंवा माया शक्ति, द्वितीय चिदंशाश्रित संवित् शक्ति तथा तृतीय आनन्दाश्रित, आह्लादिनी शक्ति।

प्रकृति के योग से परब्रह्म में जो रसोल्लास हुआ वही परार्थ किंवा आत्मार्थ सृष्टि है। व्यवहारतः जैसे जल एवं अग्नि का संसर्ग होने पर जल में उष्णतारूप से अग्नि अभिव्यक्त हो जाती है वैसे ही प्रकृति एवं परब्रह्म के संयोग से चेतनादि का प्राकट्य होता है; जैसे काष्ठ पर अग्नि का दाहकत्व एवं प्रकाशकत्व दोनों ही अंश प्रकट हो जाते हैं। आत्मार्थ सृष्टि में शुद्ध आनन्द का ही विकास है, शुद्ध आनन्दांश में परब्रह्म-स्वरूप आह्लादिनी शक्ति के योग से आनन्दकन्द परमानन्द श्रीकृष्णचन्द्र, रासेश्वरी नित्यनिकुन्जेश्वरी राधारानी, गोपीजन, लीला एवं सम्पूर्ण उपकरणों का प्राकट्य हुआ; आत्मार्थ एवं लौकिक सृष्टि में यही अन्तर है। सिद्धान्तानुसार सम्पूर्ण ही शुद्ध परब्रह्म है तदपि वह सामान्य दृष्टि का विषय नहीं; परब्रह्म स्वरूप में रसोल्लास होने पर ही रस-विकास सम्भव होता है। एतावता तृतीय पुरुषार्थ काम के आधार पर ही प्रवृत्ति सम्भव है। गोपांगनाजन स्वयं को रस-विशेष पुरुषोत्तम प्रभु में रसोल्लासरूप शुल्क की कामना करती हैं। आत्मार्थ सृष्टि में लीला का आविर्भाव होने पर ही लोकार्थ सृष्टि में उनकी अभिव्यक्ति सम्भव होती है।

गोपांगनाएँ कह रही हैं-हे सुरतनाथ! आपके द्वारा हमें सुरत-सुख की प्राप्ति होनी चाहिए थी परन्तु इसके विपरीत हमारा वध ही कर रहे हैं। ‘श्रीमुषा दृशा।’ आपके अदर्शन से हम गोपांगनाजनों का वध हो रहा है। ‘त्रुटिर्युगायते त्वामपश्यताम्।’ त्रुटिकालपर्यन्त भी आपका अदर्शन हमारे प्राणवियोग का कारण बन जाता है। जितने काल में सूर्य-रश्मि रेणु का उल्लंघन करती है अथवा जितने काल में शतपत्र कमल के एक-एक पत्र का तीव्र गतियुक्त तलवार द्वारा छेदन हो सकता है उतने ही अणुकाल का अथवा उससे भी सूक्ष्म त्रुटिकाल का आपका अदर्शन ही हमारे प्राण-वियोग का कारण बन जाता है।

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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